संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद वक्फ संशोधन बिल को राष्ट्रपति की भी मंजूरी मिल गई है. इसके साथ यह अब कानून बन गया है. इस बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चार याचिकाएं डाली गई हैं. इन याचिकाओं में कहा गया है कि ये कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है और उसके मौलिक अधिकारों का हनन करता है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है या फिर वहां से यह बिल खारिज हो सकती है और अगर होगा तो फिर इसके क्या आधार होंगे?
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के क्या आधार?
इस पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रोहित पांडे ने बताया कि राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. चुनौती का मुख्य आधार संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत होगा. इस प्रक्रिया में भारत के प्रधान न्यायाधीश तय करेंगे कि इस मामले की सुनवाई किस बेंच में होगी. रोहित पांडे ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करने का जो अधिकार है, वो संविधान को लेकर है. उन्होंने कहा कि जब कोई संवैधानिक वैधता की बात आएगी तो आप सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं.
संविधान में दिया गया है कि आर्टिकल 32 के तहत आप चैलेंज करते हैं और ये बात रखते हैं कि जो बिल लाया गया है, जो एक्ट बनने जा रहा है या जो बन गया है क्या वो संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का उल्लंघन तो नहीं है, जो केशवानंद भारत के केस में हुआ था. आप कानून बनाइए लेकिन आप संविधान के बेसिक स्ट्रक्टर को छेड़ते हैं तो कहीं न कहीं आप संविधान की वैधता को चैलेंज कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट को रिव्यू करने का अधिकार
वरिष्ठ अधिवक्ता रोहित पांडे ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट को रिव्यू करने का अधिकार है. उन्होंने कहा कि ऐसे कई मामले हैं जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया. इससे पहले आपने CA-NRC मामले में देखे होंगे, आर्टिकल 370 को जो हटाया गया उसमें भी सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया. वहीं प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट में चैलेंज किया गया, मैटर पेंडिग है. ऐसे कई मामले हैं जब उसके वैलिडिटी को चैलेंज किया जाता है तो आप सुप्रीम कोर्ट जाते हैं. वहां आप कहते हैं कि यह संविधान के खिलाफ है. हमारे जो मौलिक अधिकार हैं, उसका उल्लंघन किया जा रहा है. इस तरह के मामले में सीजेआई के यहां सुनवाई होगी.
क्या SC से रद्द हो सकता है वक्फ बिल?
वहीं, बिल के खारिज होने के सवाल पर वकील ने बताया कि अगर संविधान के तहत काम नहीं किया गया है तो फिर सुप्रीम कोर्ट दखलअंदाजी करती है, सुप्रीम कोर्ट एक फैसला सुनाती है, उसे बिल को रद्द भी करती है, उस कानून को भी रद्द करती है. उन्होंने आगे कहा कि इसमें अगर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन किया जा रहा होगा, संविधान में किसी व्यक्ति विशेष और समुदाय को जो अधिकार दिए गए हैं, उसको अगर आप छीन रहे हैं तो उसकी वैधता को चैंलेज किया जाएगा, अगर वो किसी व्यक्ति और समुदाय के खिलाफ है.