जिस बीमारी से पोप परेशान, उससे दुनिया में हर साल कितनी होती है मौतें?

कैथोलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस की तबीयत बेहद नाजुक बनी हुई है. 87 वर्षीय पोप हाल ही में सांस लेने में तकलीफ के चलते अस्पताल में भर्ती कराए गए, जहां डॉक्टरों ने जांच के बाद पाया कि वे निमोनिया से जूझ रहे हैं. उन्हें तुरंत एंटीबायोटिक दवाएं दी गईं, जिससे फिलहाल उनकी हालत में कुछ सुधार बताया जा रहा है.

हालांकि, उम्र के इस पड़ाव पर निमोनिया जैसी गंभीर बीमारी खतरे की घंटी से कम नहीं. यह वही संक्रमण है, जो हर साल लाखों लोगों की जान ले लेता है. ऐसे में पूरी दुनिया की निगाहें वेटिकन पर टिकी हैं—क्या पोप फ्रांसिस इस संकट से उबर पाएंगे? आइए जानते हैं कि ये कितना खतरनाक हैं, कौन से देश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं?

हर 13 सेकंड में एक मौत!

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज के अनुसार, साल 2019 में निमोनिया से 25 लाख लोगों की मौत हुई थी. यानी हर 13 सेकंड में एक व्यक्ति इस बीमारी का शिकार हो रहा था. यह संक्रमण सबसे ज्यादा छोटे बच्चों और बुजुर्गों पर असर डालता है. आंकड़ों के मुताबिक, निमोनिया से होने वाली 50% मौतें 50 साल से अधिक उम्र के लोगों में होती हैं, जबकि 30% मौतें 5 साल से कम उम्र के बच्चों में दर्ज की जाती हैं.

कोविड-19 ने और बढ़ाया मौतों का आंकड़ा

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, साल 2021 में कोविड-19 के कारण निमोनिया से मरने वालों की संख्या में 35 लाख और जुड़ गई. यानी उस साल कुल मिलाकर सांस से जुड़ी बीमारियों के कारण 60 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. इतनी बड़ी संख्या में मौतें किसी दूसरे संक्रमण से नहीं होती है.

किन देशों में सबसे ज्यादा मौतें?

निमोनिया से होने वाली दो-तिहाई मौतें सिर्फ 20 देशों में ही होती हैं. इनमें भारत, चीन, नाइजीरिया, जापान, ब्राज़ील, अमेरिका, पाकिस्तान, फिलीपींस, इथियोपिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इंडोनेशिया, ब्रिटेन, बांग्लादेश, रूस, तंजानिया, थाईलैंड, दक्षिण अफ्रीका, अर्जेंटीना, जर्मनी और बुर्किना फासो शामिल हैं.

कम आय वाले देशों में छोटे बच्चों की निमोनिया से सबसे ज्यादा मौतें होती हैं, जबकि विकसित देशों में बुजुर्ग इस बीमारी की चपेट में आते हैं. कई मध्यम आय वाले देशों में अब बच्चों और बुजुर्गों दोनों में निमोनिया से मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.

लक्ष्य से अब भी दूर दुनिया

पिछले कुछ वर्षों में निमोनिया को रोकने के लिए कई वैश्विक लक्ष्य तय किए गए, लेकिन इनमें से कई अब भी अधूरे हैं. GAPPD यानी ग्लोबल एक्शन फॉर द प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ निमोनिया एंड डायरिया का टार्गेट था कि 2025 तक हर 1000 जन्मों पर निमोनिया से होने वाली मौतों को 3 से कम किया जाए, जबकि संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDG) के तहत 2030 तक यह आंकड़ा 25 से नीचे लाने का लक्ष्य रखा गया. हालांकि, इन लक्ष्यों को हासिल करने की राह में अब भी कई चुनौतियां हैं.

रोकथाम संभव, लेकिन जरूरी है जागरूकता

निमोनिया बैक्टीरिया, वायरस या फंगस के कारण हो सकता है. अच्छी बात यह है कि यह बीमारी वैक्सीन से रोकी जा सकती है और इसका इलाज एंटीबायोटिक्स व ऑक्सीजन से संभव है. इसके बावजूद निमोनिया अब भी कई देशों में एक जानलेवा बीमारी बना हुआ है.

अगर सही समय पर इलाज और जागरूकता अभियान चलाए जाएं, तो निमोनिया से होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि एक ऐसी दुनिया संभव है, जहां निमोनिया से मौतें दुर्लभ हो जाएं. इसके लिए जरूरी है कि सभी देशों में टीकाकरण, साफ-सफाई और स्वास्थ्य सेवाओं पर ज्यादा ध्यान दिया जाए.

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