सिर्फ गाड़ी चोरी की जानकारी देरी से देने पर क्लेम रद्द नहीं किया जा सकता

चंडीगढ़: चंडीगढ़ उपभोक्ता आयोग ने एक मामले में अहम टिप्पणी देते हुए द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को गाड़ी चोरी का क्लेम देने के आदेश दिए हैं। आयोग ने कहा है कि कंपनी को घटना की जानकारी देरी से देना क्लेम रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। इंश्योरेंस कंपनी को आदेश दिए गए है कि गाड़ी की इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वेल्यू(IDV) 2,70,002 रुपए में से 1 हजार रुपए कम कर (एक्ससे क्लॉज) 2,69,002 रुपए शिकायतकर्ता को अदा करेगा। इसके लिए शिकायतकर्ता 4 सप्ताह में कंपनी द्वारा मांगे गए दस्तावेज प्रदान करेगा।दस्तावेज जमा करवाने के 2 सप्ताह में इंश्योरेंस कंपनी क्लेम अदा करेगी। इसके अलावा कुल 10 हजार रुपए शिकायतकर्ता को हुई मानसिक पीड़ा और शोषण के चलते हर्जाना एवं अदालती खर्च के रूप में कंपनी को अदा करने के लिए कहा गया है।आयोग ने गुरशिंदर सिंह बनाम श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य केस में उपभोक्ता आयोग की सर्वोच्च बैंच के 24 जनवरी, 2020 को आए फैसले को केस में आधार बनाया। इसमें कहा गया था कि सिर्फ चोरी की जानकारी इंश्योरेंस कंपनी को देरी से देना क्लेम रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। आयोग ने कहा कि शिकायतकर्ता ने गाड़ी चोरी होने पर पुलिस को तुरंत जानकारी दी थी। गाड़ी न मिलने पर पुलिस ने अनट्रेस रिपोर्ट बनाई थी। वहीं इंश्योरेंस कंपनी ने 15 मई, 2019 को शिकायतकर्ता को क्लेम संबंधी कुछ दस्तावेज जमा करवाने को कहा था।मोहाली सेक्टर 78 के रंग लाल ने द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मनीमाजरा स्थित ऑफिस को पार्टी बनाते हुए एक शिकायत अक्तूबर, 2019 में दायर की थी। आयोग ने फैसले में कहा कि 4 साल से ज्यादा का समय बीतने के बावजूद शिकायतकर्ता का क्लेम नहीं दिया गया। ऐसे में इंश्योरेंस कंपनी को सेवा में कोताही बरतने का जिम्मेदार पाया गया जिससे शिकायतकर्ता को परेशानी झेलनी पड़ी।जिस दिन चोरी हुई उसी दिन FIR करवा दी थीशिकायतकर्ता ने एक फोर्ड फिगो कार (PB 65V 2037) वर्ष 2013 में खरीदी थी। इसकी द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी से 31 जनवरी, 2018 से 30 जनवरी, 2019 के बीच इंश्योरेंस करवाई हुई थी। यह सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से किश्तों पर ली हुई थी। 8 नवंबर, 2016 को किश्तें खत्म होने पर बैंक ने उन्हें नो ड्यू सर्टिफिकेट मिल गया था। 4 जुलाई, 2018 को शिकायतकर्ता की कार घर के बाहर रोज की तरह खड़ी थी। अगली सुबह साढ़े 5 बजे जब शिकायतकर्ता ने घर के बाहर देखा तो कार गायब थी। उसी दिन सोहाना(मोहाली) थाने में FIR दर्ज करवाई गई थी। उसी दिन भगत फोर्ड(कार शोरुम), चंडीगढ़ में इंश्योरेंस कंपनी के एजेंट हरप्रीत कुमार को इसकी जानकारी दी गई थी।इसके बाद हरप्रीत सिंह नामक कर्मी 7 जुलाई, 2018 को उनके घर आया और उसे गाड़ी चोरी की एक बार फिर से जानकारी दी गई। इंश्योरेंस कंपनी के उस रिप्रेजेंटेटिव ने उन्हें सलाह दी कि गाड़ी चोरी की न्यूजपेपर कटिंग दिखाए। वहीं तीन दिन बाद उसे संपर्क करने को कहा। हालांकि उस कर्मी ने नौकरी छोड़ दी थी और शिकायतकर्ता को इस मामले में कंपनी द्वारा की गई कार्रवाई(यदि की गई हो) की जानकारी नहीं दी। कुछ समय बाद हरप्रीत कुमार नामक कंपनी कर्मी शिकायतकर्ता को मिला मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई।इंश्योरेंस कंपनी ने क्लेम नहीं दिया15 नवंबर, 2018 को शिकायतकर्ता ने इंश्योरेंस कंपनी के टोल फ्री नंबर पर कॉल की और पूछा कि कैसे क्लेम के लिए आवेदन किया जा सकता है। इसके बाद शिकायतकर्ता भगत फोर्ड बॉडी शॉप गए और मैनेजर को कुछ पेपर्स दिए। 15 मई, 2019 को शिकायतकर्ता को इंश्योरेंस कंपनी से लेटर मिला जिसमें कुछ दस्तावेज भरने को कहा गया था। शिकायतकर्ता ने कार चोरी की जानकारी रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी(RTA) को भी दी थी। इसके बाद कार की दोनों चाबियां इंश्योरेंस कंपनी को दी।इसके बावजूद क्लेम न मिलने पर 11 जुलाई, 2019 को शिकायतकर्ता ने कंपनी को लीगल नोटिस भेजा मगर कोई हल न हुआ। 22 जुलाई, 2019 को कंपनी ने क्लेम की मांग रद्द करते हुए शिकायतकर्ता को लेटर भेज इसकी जानकारी दी।शिकायतकर्ता ने कहा कि उनकी कार चोरी को लेकर पुलिस की अनट्रेस रिपोर्ट भी 2 फरवरी, 2019 को इलाका मजिस्ट्रेट ने स्वीकार कर ली थी। शिकायतकर्ता ने कहा कि गलत ढंग से उनके क्लेम की मांग कंपनी ने रद्द की। कंपनी ने कहा कि शिकायतकर्ता ने गाड़ी चोरी की जानकारी उन्हें देरी से दी थी।कंपनी ने यह दलील पेश कीउपभोक्ता आयोग में कंपनी ने कहा कि शिकायतकर्ता ने लिखित में कार चोरी की जानकारी लगभग 4 महीने की देरी से दी थी। इसे इंश्योरेंस पॉलिसी की पहली कंडीशन की उल्लंघना बताया गया था।

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