महाराष्ट्र में कांग्रेस से अलग हुई सपा, क्या यूपी में भी दो लड़कों की जोड़ी टूट जाएगी?

महाराष्ट्र चुनाव के बाद से ही इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. शिवसेना (यूबीटी) के एक एमएलसी ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद के विध्वंस का समर्थन करते हुए एक पोस्ट किया था, इसी के बाद से विपक्षी गठबंधन के अंदरूनी मतभेद उभरकर सामने आ गए हैं. कांग्रेस के नेतृत्व वाले महा विकास अघाड़ी से सपा ने अलग होने का ऐलान कर दिया है. इतना ही नहीं सपा महासचिव राम गोपाल यादव ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. महाराष्ट्र के बाद यूपी में कांग्रेस और सपा के रिश्ते बिगड़ते नजर आ रहे हैं, जिसके चलते सवाल उठने लगा है कि यूपी में दो लड़कों की जोड़ी यानी अखिलेश यादव और राहुल गांधी के बीच सियासी केमिस्ट्री क्या टूट जाएगी?

समाजवादी पार्टी की महाराष्ट्र इकाई ने महाविकास अघाड़ी गठबंधन से बाहर आने का ऐलान कर दिया है. भले ही सपा हाईकमान ने खामोशी अख्तियार कर रखी हो, लेकिन महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष अबू आसिम आजमी ने निर्णय की घोषणा शीर्ष नेतृत्व की सहमति से ही की है. आजमी ने कहा कि इंडिया गठबंधन में शामिल शिवसेना (यूबीटी) के नेता मिलिंद नार्वेकर ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस में शामिल लोगों को बधाई देकर दूसरों की धार्मिक भावनाओं का अनादर किया है, तो गठबंधन का हिस्सा बनना व्यर्थ है. इसलिए हमें निर्णय लेना पड़ा जबकि कांग्रेस और एनसीपी अपना फैसला खुद लें. आजमी के आरोपों पर शिवसेना (यूबीटी) के नेता आदित्य ठाकरे ने महाराष्ट्र में सपा को बीजेपी की बी टीम करार दिया है.

दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा कांग्रेस के अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनी थी. यूपी के साथ मध्य प्रदेश में भी सपा ने कांग्रेस के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ा था. पश्चिम बंगाल को छोड़कर देश के दूसरे राज्यों में सपा ने इंडिया गठबंधन को समर्थन किया था. महाराष्ट्र में सपा ने कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को अपना समर्थन दिया था. यूपी में सपा और कांग्रेस की दोस्ती हिट रही. राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच बेहतरीन सियासी केमिस्ट्री देखने को मिली थी. इसका नतीजा रहा है कि यूपी की 80 में 43 सीटें सपा-कांग्रेस गठबंधन जीतने में कामयाब रही. सपा 37 सीटें और कांग्रेस 6 सीटें जीती थी.

सपा-कांग्रेस के बीच बिगड़ने लगे रिश्ते

लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद से ही सपा और कांग्रेस के बीच रिश्ते बिगड़ने लगे थे. हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में सपा को इंडिया गठबंधन में सीटें नहीं मिल सकीं तो महाराष्ट्र और झारखंड में सपा को अपने प्रत्याशी इंडिया गठबंधन से अलग उतारने पड़े. ऐसे में सपा ने भी यूपी उपचुनाव में कांग्रेस के मन के मुताबिक सीटें नहीं दी. इसके चलते कांग्रेस ने उपचुनाव लड़ने से ही अपने कदम पीछे खींच लिए. महाराष्ट्र चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस और सपा के रिश्ते खुलकर सामने आ गए हैं.

सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की परफॉर्मेंस पर सवाल खड़े कर दिए. रामगोपाल ने कहा कि कांग्रेस अगर अच्छा प्रदर्शन करती तो 2024 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री न बन पाते. उन्होंने कहा कि चाहे लोकसभा का चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव कांग्रेस कहीं भी अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाई है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हिमाचल प्रदेश में चार सीटें हार गई. कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार होते हुए भी वहां की आधी से ज्यादा सीटें हार गए. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस परफॉर्मेंस ठीक से नहीं कर सकी.

संभल पर भी दोनों का स्टैंड अलग-अलग

यूपी उपचुनाव में ही कांग्रेस और सपा के बीच कड़वाहट देखने को मिली थी. अब संभल के मुद्दे पर सपा को कांग्रेस का राजनीतिक स्टैंड बिल्कुल भी रास नहीं आया. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के संभल जाने की कोशिश पर सपा ने सवाल खड़े कर दिए. सपा के महासचिव राम गोपाल यादव ने कहा कि कांग्रेस संसद में संभल मुद्दे को उठा नहीं रही और राहुल गांधी और प्रियंका गांधी संभल जा रहे हैं. इतना ही नहीं कांग्रेस के द्वारा संसद में उठाए जा रहे अडानी के मुद्दे से भी खुद को किनारा कर लिया है.

महाराष्ट्र में सपा उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना (यूबीटी) की ओर से ‘हिंदुत्व के मुद्दे’ पर जोर देने से नाराज है, लेकिन रामगोपाल यादव जिस तरह कांग्रेस के परफॉर्मेंस को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं. ऐसे में एक बात साफ है कि सपा और कांग्रेस के बीच इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि कांग्रेस और सपा का सियासी आधार एक ही वोटबैंक पर टिका हुआ है. 2024 में कांग्रेस के छह सीटें जीतने के बाद से पार्टी नेताओं के हौसले बुलंद है. कांग्रेस की रणनीति मुस्लिम और दलित वोटों को साधने की है, जिसके चलते सपा के साथ उनके राजनीतिक टकराव भी दिखने लगे हैं.

राहुल के संभल दौरे ने बढ़ाई सपा की बैचेनी

राहुल गांधी ने 2024 में रायबरेली से सांसद चुने जाने के बाद से ही यूपी पर खास फोकस कर रखा है. हाथरस हादसे के पीड़ित परिवारों से मिलने अलीगढ़ राहुल गांधी पहुंचे थे तो रायबरेली जिले में दलित परिवार की हत्या पर इंसाफ दिलाने पहुंच गए थे. इसी कड़ी में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने संभल जाकर पीड़ित परिवार से मुलाकात कर सियासी मैसेज देने की रणनीति बनाई थी. इसको राहुल गांधी का मुस्लिमों के जख्मों पर मरहम लगाकर उनके विश्वास को जीतने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा था. ऐसे में राहुल-प्रियंका गांधी के संभल के दौरे से सपा की सियासी बेचैनी बढ़ गई थी.

क्यों बढ़ रहा है सपा-कांग्रेस के बीच मनमुटाव?

उत्तर प्रदेश का मुस्लिम मतदाता एक समय कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है. राम मंदिर आंदोलन के बाद मुस्लिम वोट कांग्रेस से दूर हो गया. मुस्लिम मतदाता भी 1992 के बाद सपा के साथ जुड़ गया. इसका नतीजा रहा कि कांग्रेस सत्ता से दूर हो गई और अभी तक वापसी नहीं कर सकी. मुस्लिम वोटों का झुकाव इस बीच जब-जब कांग्रेस की तरफ हुआ तो कांग्रेस का आधार बढ़ा. 2009 और अब 2024 में कांग्रेस की सीटें बढ़ने में मुस्लिम वोटों का रोल अहम रहा था.

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी इसी वोटबैंक को अपने साथ जोड़े रखने की कवायद में है. कांग्रेस लंबे समय से यूपी में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन तलाश कर रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों ने कांग्रेस की उम्मीद जगा दी है. ऐसे में कांग्रेस यूपी में सपा की बैसाखी के बजाय अपने पैरों पर खड़े होने की कवायद में है. इसके लिए कांग्रेस अभी 150 सीटों पर खास फोकस कर रही है, जहां पर मुस्लिम अहम भूमिका में है. कांग्रेस के इस प्लान को सपा बाखूबी समझ रही है. ऐसे में कांग्रेस और सपा के बीच सियासी मनमुटाव बढ़ने लगा है, जिसके चलते सवाल उठने लगे हैं कि 2027 में राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी यूपी में क्या एक साथ नजर आएगी?

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