‘स्वागत है दोस्त!’, CH2 के ऑर्बिटर ने Chandrayan 3 के लैंडर मॉड्यूल का किया स्वागत, जानें किस समय होगा लाइव टेलिकास्ट
मिशन चंद्रयान 3 से भारत समेत दुनिया को बहुत उम्मीदें हैं। चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान 3 के लैंड करने में अब महज कुछ घंटों का समय बाकी रह गया है। इससे पहले चंद्रयान 3 के लैंडर मॉड्यूल को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। दरअसल, चंद्रयान 2 ऑर्बिटर ने चंद्रयान 3 के लैंडर मॉड्यूल से संपर्क किया है और उसका स्वागत किया है। आपको बता दें कि साल 2019 में चंद्रमा पर उतरते वक्त चंद्रयान 2 ने अपना नियंत्रण खो दिया था और चंद्रमा की सतह पर क्रैश हो गया था। चंद्रयान 3 के लैंडर मॉड्यूल और चंद्रयान 2 के ऑर्बिटर के बीच दो तरफा संचार प्रणाणी स्थापित हो गई है। अब एमओएक्स के पास कई और रूट्स हैं लैंडर मॉड्यूल तक पहुंचने के लिए। बता दें कि चंद्रयान 3 के लैंडिंग का लाइव टेलीकास्ट 23 अगस्त की शाम 5.20 बजे शुरू किया जाएगा।
लैंडर मॉड्यूल का चंद्रयान 2 के ऑर्बिटर ने किया स्वागत
20 अगस्त को चंद्रयान तीन ने सफलतापूर्वक डिबूस्टिंग की प्रक्रिया को पूरा कर लिया। इसी के साथ चंद्रयान का लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा से महज 25 किमी दूर था। हालांकि यह दूरी अब और कम होती जा रही है। इसरो द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक 23 अगस्त को चंद्रयान 3 का लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा। इसकी लाइव टेलीकास्ट की जाएगी। इस बीच मिशन चंद्रयान 2 के ऑर्बिटर का चंद्रयान 3 के लैंडर मॉड्यूल से संपर्क करना शुभ संकेत दे रहा है।
चंद्रमा की सतह को छूना भारत के लिए क्यों है फायदेमंद
भारत जल्द ही जब चांद की सतह पर उतरने का अपना दूसरा प्रयास करेगा तो राष्ट्रीय गौरव से कहीं अधिक बातें खबरें बनेंगी। भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर 23 अगस्त को उतरने का प्रयास करेगा, जिससे संभावित रूप से कई आर्थिक लाभ मिलने का रास्ता साफ हो सकता है। चंद्रयान-3 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन है और अगर यह कामयाब होता है तो भारत, अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ (अब रूस) और चीन के बाद चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश होगा।
चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद चंद्रमा पर एक रोवर तैनात करने और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का अध्ययन करने की योजना है। अंतरिक्ष यात्रा में लगे इस देश के लिए यह केवल राष्ट्रीय गौरव की बात नहीं है। चंद्रयान-3 की सफलता का भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी असर पड़ सकता है। दुनिया ने पहले ही अंतरिक्ष संबंधी प्रयासों से रोजमर्रा की जिंदगी में मिले फायदे देखे हैं जैसे कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जल पुनर्चक्रण के साथ स्वच्छ पेयजल तक पहुंच, स्टारलिंक द्वारा विश्वभर में इंटरनेट का प्रसार, सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि और स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियां आदि।
उपग्रह से मिलने वाली तस्वीरों और नौवहन के वैश्विक आंकड़ों की बढ़ती मांग के साथ कई रिपोर्टें दिखाती हैं कि दुनिया पहले ही अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की तेजी से वृद्धि के चरण में है। ‘स्पेस फाउंडेशन’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2023 की दूसरी तिमाही में 546 अरब डॉलर के मूल्य पर पहुंच चुकी है। यह आंकड़ा पिछले दशक में इस मूल्य में 91 प्रतिशत की वृद्धि को दिखाता है। भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2025 तक 13 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। चंद्रमा पर सफल लैंडिंग भारत की तकनीकी क्षमता को भी बयां करेगी।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 50 साल पहले अपोलो अभियान के दौरान मनुष्यों को सफलतापूर्वक चांद पर पहुंचाया था लेकिन ऐसा लगता है कि कई लोग वहां पहुंचने के लिए उठाए कदमों और भारी मात्रा में लगाए धन को भूल गए हैं। भारत की चंद्रयान-1 के साथ चंद्रमा पर पहुंचने की पहली कोशिश अपने लगभग हर उद्देश्य और वैज्ञानिक लक्ष्यों में कामयाब थी जिसमें पहली बार चांद की सतह पर पानी के सबूत मिले थे। लेकिन इसरो का, दो साल के लिए निर्धारित इस मिशन के 312 दिन पूरे होने के बाद ही अंतरिक्षयान से संपर्क टूट गया था।
भारत ने छह सितंबर 2019 को चंद्रयान-2 मिशन के तहत प्रज्ञान रोवर लेकर जा रहे विक्रम लैंडर के साथ चांद की सतह पर पहुंचने का फिर से प्रयास किया। हालांकि, चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर लैंडर से संपर्क टूट गया और नासा द्वारा ली गयी तस्वीरों ने बाद में पुष्टि की कि यह चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। चंद्रयान-2 से सबक लेकर चंद्रयान-3 में कई सुधार किए गए हैं। लक्षित लैंडिंग क्षेत्र को 4.2 किलोमीटर लंबाई और 2.5 किलोमीटर चौड़ाई तक बढ़ा दिया गया है।
चंद्रयान-3 में लेजर डॉपलर वेलोसिमीटर के साथ चार इंजन भी हैं जिसका मतलब है कि वह चंद्रमा पर उतरने के सभी चरणों में अपनी ऊंचाई और अभिविन्यास को नियंत्रित कर सकता है। अगर चंद्रयान-3 कामयाब होता है तो यह दिखाएगा कि कैसे अंतरिक्ष अधिक सुलभ होता जा रहा है और यह कठित मिशन को हासिल करने में भारत की निरंतर दृढ़ता को दर्शाएगा। प्रत्येक सफल मिशन के साथ मानवता का चंद्रमा की सतह और उसके पर्यावरण के बारे में ज्ञान बढ़ता जा रहा है जिसका मतलब है कि चंद्रमा तक जाने और वहां ठहरने के जोखिम कम हो रहे हैं।