देश में आजादी के बाद पहली बार जातिगत जनगणना होने जा रही है. मोदी सरकार ने सभी जातियों की गिनती के लिए मंजूरी दी दी है. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि पीएम मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में जातिगत जनगणना कराने को स्वीकृति दी गई है. जातिवार गणना होने के बाद आरक्षण को बढ़ाने की मांग उठ सकती है. राहुल गांधी ने जिस तरह जातिगत जनगणना के फैसला का स्वागत करते हुए आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को खत्म करने और सरकारी संस्थानों की तरह ही निजी संस्थानों में भी आरक्षण लागू की मांग उठाई है, उसके सियासी असर दूर तक नजर आएंगे?
आरक्षण का स्वरूप बदल जाएगा
देश में जातिगत जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद आरक्षण की सीमा बढ़ाने का दबाव सरकार पर पड़ेगा. जातिगत जनगणना से हर जाति की गिनती होगी और प्रमाणिक आंकड़ा सबके सामने होगा. ऐसे में जातिगत जनगणना पर मोदी सरकार के फैसला लेने के बाद राहुल गांधी ने आरक्षण की लिमिट बढ़ाने की मांग उठा दी है. 1931 की जाति गणना में पिछड़ी जातियों की आबादी 52 फीसदी से अधिक बताई गई थी. मंडल आयोग में ओबीसी की आबादी 52 फीसदी मानी गई थी, पर राज्यों के सर्वे में ओबीसी की संख्या बढ़कर सामने आई है. जाति गणना से राष्ट्रीय स्तर पर हर जाति की जनसंख्या का पता लग सकेगा.
देश में 27 फीसदी ओबीसी के आरक्षण को बढ़ाने की डिमांग उठ सकती है. इसके चलते आरक्षण का स्वरूप पूरी तरह बदल जाएगा और आरक्षण की 50 फीसदी की लिमिट भी खत्म हो सकती है. राहुल गांधी आरक्षण की लिमिट को खत्म करने की बात लगातार कर रहे हैं. आरक्षण की लिमिट खत्म होते ही सरकारी स्कूल और नौकरियों में असर पड़ेगा. स्कूल कॉलेजों में पिछड़ी जातियों के छात्र-छात्राओं की संख्या अधिक दिखाई दे सकती है. नौकरियों में आरक्षण बदलेगा. इससे नई नौकरियों में उन जातियों की संख्या अधिक हो सकती है, जिन जातियों की संख्या सरकारी नौकरियों में कम है.
प्राइवेट स्कूल-संस्थान पर पड़ेगा असर
राहुल गांधी ने सरकारी संस्थानों की तरह ही निजी संस्थानों में भी आरक्षण लागू करने की मांग रखी. उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय केवल सरकारी नौकरियों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि निजी क्षेत्र में भी समान अवसर सुनिश्चित किए जाने चाहिए. इसके लिए उन्होंने बाकायदा अनुच्छेद 15(5) को लागू करने का सुझाव दिया, जिसके जरिए संविधान में ही प्राइवेट स्कूल और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था का जिक्र है. इससे साफ है कि जातिवार जनगणना के साथ प्राइवेट क्षेत्र में भी आरक्षण की मांग तेज हो सकती. कांग्रेस ने अहमदाबाद के अधिवेशन में निजी क्षेत्र में आरक्षण की वकालत की थी और उसके लिए प्रस्ताव लाई थी.
राहुल गांधी ने अनुच्छेद 15(5) की बात करके निजी स्कूल और कॉलेज में आरक्षण के मुद्दे को सियासी चर्चा के केंद्र में ला दिया है. इस तरह जातीय जनगणना के बाद आरक्षण बढ़ाने की मांग के साथ-साथ प्राइवेट संस्थानों में भी आरक्षण की मांग जोर पकड़ सकती है. इसका सीधा असर स्कूल कॉलेजों में भी दिखाई पड़ सकता है.
अनुच्छेद 15(5) में आखिर क्या है?
संविधान के पहले संशोधन 1951 में 15(5) को जोड़ा गया है, जिसके तहत निजी क्षेत्र के स्कूल-कॉलेज में दलित, ओबीसी और आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षण की व्यवस्था है. इसके अलावा उच्च शिक्षा में आरक्षण की व्यवस्था के लिए संसद में केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2006 पारित किया गया था और अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों के लिए केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण 3 जनवरी, 2007 से लागू किया गया था.
10 अप्रैल 2008 को अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ के मामले का हवाला देते हुए कांग्रेस ने कहा कि 2-0 के अंतर से अनुच्छेद 15 (5) को केवल राज्य द्वारा संचालित और राज्य द्वारा सहायता प्राप्त संस्थानों के लिए संवैधानिक रूप से वैध माना जाता है और निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में आरक्षण को उचित तरीके से तय करने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है.
12 मई, 2011 को आईएमए बनाम भारत संघ के मामले में उन्होंने कहा कि 2-0 के अंतर से अनुच्छेद 15 (5) को निजी गैर-सहायता प्राप्त गैर-अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए बरकरार रखा गया है. इसके अलावा एक अन्य मामले में प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ 29 जनवरी, 2014 में 5-0 के अंतर से अनुच्छेद 15(5) को पहली बार स्पष्ट रूप से बरकरार रखा गया है.
देश में अभी किसे कितना आरक्षण?
- अनुसूचित जाति (एससी): 15%
- अनुसूचित जनजाति (एसटी): 7.5%
- अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी): 27%
- आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग (ईडब्ल्यूएस): 10% आरक्षण.
निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करना आसान
निजी शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों के लिए आरक्षण भी संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है. प्राइवेट स्कूल और कॉलेज में आरक्षण के लिए किसी तरह का न ही कोई संविधान संशोधन करना है और न ही कोई कानूनी अड़चन है. राहुल की डिमांड के मुताबिक अनुच्छेद 15(5) को लागू किया जाता है तो देश की प्राइवेट स्कूल, कॉलेज और शिक्षण संस्थानों में दलित, ओबीसी और आदिवासी समुदाय के लोगों की संख्या बढ़ जाएगी. मौजूदा समय में प्राइवेट संस्थानों में बड़ी संख्या में अपर क्लास के बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन जातिगत जनगणना और अनुच्छेद 15(5) के लागू होने से स्थिति बदल सकती है.