संघ ने डेढ़ साल पहले ही जातीय जनगणना के दे दिए थे संकेत, मोदी-भागवत की मुलाकात से लगी फाइनल मुहर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात मंगलवार को रात में हुई और अगले ही सुबह बुधवार को जातीय जनगणना को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई. अब इस बात की चर्चा राजनीतिक गलियारों में जोर पकड़ने लगी है कि क्या केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना कराने का फैसला संघ की रजामंदी के बाद किया है? संघ प्रमुख भागवत ने मंगलवार रात पीएम मोदी से उनके आवास पर भेंट की थी. माना जा रहा है कि दोनों नेताओं की बैठक में जातीय जनगणना को लेकर चर्चा हुई थी.

पिछले साल 2 सितंबर को केरल के पलक्कड़ में हुई संघ की अखिल भारतीय समन्वय बैठक के दौरान आरएसएस ने जातीय जनगणना को लेकर समर्थन किया था. तब पलक्कड़ में बैठक के बाद अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख संघ सुनील आंबेकर ने टीवी9 भारतवर्ष संवाददाता के जातीय जनगणना के सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि जातीय जनगणना राष्ट्रीय एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण है.

सितंबर में आंबेकर ने क्या कहा था

तब आंबेकर ने कहा था कि ”देश और समाज के विकास के लिए सरकार को आंकड़े की जरूरत पड़ती है. समाज की कुछ जाति के लोगों के प्रति विशेष ध्यान देने की जरूरत भी होती है. इन उद्देश्यों के लिए इसे (जाति जनगणना) करवाना ही जाना चाहिए. हालांकि इस जनगणना का इस्तेमाल लोक कल्याण के लिए होना चाहिए. इसे पॉलिटिकल टूल बनने से रोकना होगा”.

सुनील आंबेकर का ये बयान लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद आया था. तब लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपने 400 सीटों के लक्ष्य को पाने में नाकाम रही थी और वो सिर्फ 240 सीटें ही जीत पाई थी. इसका परिणाम यह हुआ कि 2024 में केंद्र में बीजेपी अकेले अपने दम पर सरकार नहीं बना सकी और उसे एनडीए घटक दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रही थी.

दिसंबर 2023 के गाडगे के बयान के बाद क्या बोला RSS

इस चुनाव में जातीय राजनीति की धूरी माने जाने वाले बिहार में बीजेपी का स्कोर ठीक-ठाक रहा लेकिन कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश में बीजेपी को नुकसान पहुंचाया, उससे बीजेपी और आरएसएस को गहरा धक्का लगा. इसी परिणाम के बाद से ही आरएसएस ने भी जातीय जनगणना के समर्थन में आगे आने का संकेत दे दिया था.

इससे पहले आरएसएस जातीय जनगणना के समर्थन में नहीं रही थी. जातीय जनगणना को लेकर आंबेकर से पहले विदर्भ प्रांत के प्रमुख श्रीधर गाडगे ने करीब डेढ़ साल पहले दिसंबर 2023 को नागपुर में जातिगत जनगणना को लेकर कहा था, यह जनगणना एक निरर्थक अभ्यास साबित होगी, यह सिर्फ कुछ लोगों की ही मदद करेगी. उन्होंने कहा था, “इसमें हमें कोई फायदा नहीं बल्कि नुकसान है. ये असमानता की जड़ है और इसे बढ़ावा देना ठीक नहीं है.” हालांकि गाडगे के बयान के बाद कांग्रेस यह बताने की कोशिश में लग गई कि संघ दलित और पिछड़ा विरोधी है.

विपक्ष का बड़ा मुद्दा झटक लिया

आरएसएस के सहसंघचालक श्रीधर गाडगे के बयान के बाद जातीय जनगणना पर संघ के रूख को लेकर सवाल उठाए जाने लगे थे, इस पर 22 दिसंबर 2023 को सुनील आंबेकर ने कहा था, “जाति आधारित जनगणना का इस्तेमाल समाज के समूचे उत्थान के लिए किया जाना चाहिए. साथ ही इससे जुड़े लोगों को यह सुनिश्चित भी करना चाहिए कि किसी भी कारण से सामाजिक सद्भाव और एकता भंग न होने पाए. जातिगत जगगणना को लेकर आंबेकर के इस बयान से ही काफी कुछ हद तक संघ का स्टैंड क्लियर हो गया था.

माना जा रहा है कि मोदी सरकार ने जातीय जनगणना को एक झटके में मंजूरी इसलिए दी है ताकि संघ के कार्यकर्ताओं और अधिकारियों को बृहद कंसल्टेशन के जरिए ये बात समझ में आ गई है कि देश का बहुसंख्यक जनमानस इसके पक्ष में दिख रहा है. साथ ही केंद्र सरकार और बीजेपी को यह भी लगता है कि जातीय जनगणना के जरिए कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल हिंदू मतों के बंटवारे में कहीं ना कहीं कामयाब भी हो रहा है. लिहाजा इसको लागू कर केंद्र सरकार ने विपक्ष से एक बड़ा मुद्दा भी हथिया लिया है.

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