मोदी-शाह के गढ़ गुजरात में कांग्रेस का सबसे बड़ा मंथन, BJP की सियासी प्रयोगशाला को ही राहुल ने पॉलिटिकल एक्सपेरिमेंट के लिए क्यों चुना?

कांग्रेस ने अपने भविष्य की सियासी दशा और दिशा को तय करने के लिए बीजेपी के सबसे मजबूत गढ़ गुजरात को चुना है. कांग्रेस का दो दिवसीय अधिवेशन गुजरात के अहमदाबाद में मंगलवार से शुरू हो रहा है. कांग्रेस की देश के तीन राज्यों में सरकार है. गर्मी के लिहाज से हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के लिए सबसे मुफीद जगह हो सकती थी और चुनाव के मद्देनजर बिहार अहम हो सकता था. वह सब छोड़कर कांग्रेस ने बीजेपी की राजनीतिक प्रयोगशाला माने जाने वाले गुजरात को अपने पॉलिटिकिल एक्समेरिमेंट के लिए चुना है. ऐसे में सवाल उठता है कि राहुल गांधी ने सीधे पीएम मोदी और अमित शाह के गृह राज्य गुजरात को अधिवेशन के लिए क्यों चुना?

गुजरात में तीन दशक से कांग्रेस सत्ता का सियासी वनवास झेल रही है और देश की सत्ता से 11 साल से बाहर है. ऐसे में कांग्रेस अपने खोए हुए जनाधार को पाने और आगामी रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए गुजरात के अहमदाबाद में दो दिन का मंथन कर रही है. छह दशक के बाद कांग्रेस का अधिवेशन गुजरात में हो रहा है. इस अधिवेशन के जरिए अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने और बीजेपी से मुकाबला करने के लिए पार्टी रूपरेखा बनाएगी. अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी सहित तमाम बड़े नेता शिरकत करेंगे. ऐसे में हम बताते हैं कि कांग्रेस ने अपने सियासी प्रयोग के लिए गुजरात को ही क्यों चुना?

गांधी-पटेल की विरासत का संदेश

देश की आजादी की लड़ाई के इतिहास से निकली कांग्रेस जानती है कि आजादी के इतिहास और उसके बाद भारत के स्वरूप में गुजरात की कितनी बड़ी भूमिका रही है. कांग्रेस की रणनीति अधिवेशन के बहाने महात्मा गांधी व सरदार पटेल की विचारधारा के दम पर अपना सियासी वनवास खत्म करने की है. अधिवेशन के पहले दिन मंगलवार को सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय स्मारक में सीडब्ल्यूसी की बैठक होगी. इसमें देशभर के 262 कांग्रेसी नेता शिरकत करेंगे, जिसकी अध्यक्षता मल्लिकार्जुन खरगे करेंगे.

अधिवेशन के दूसरे दिन बुधवार को साबरमती रिवरफ्रंट पर कांग्रेसी सीडब्ल्यूसी के सदस्यों के अलावा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, कांग्रेस शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री और कुछ वरिष्ठ नेता शामिल होंगे.

कांग्रेस के नेता इस बात पर लगातार जोर देते नजर आ रहे हैं कि बीजेपी भले ही पटेल की विरासत पर दावा कर रही हो, लेकिन महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध पटेल ने ही लगाया था. संदेश यह है कि कांग्रेस महात्मा और सरदार की धरती से बीजेपी को चुनौती देने का संकल्प ले रही है. कांग्रेस ने पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशनों के ऐतिहासिक फोटो को चुनते हुए एक वार्षिक कलैंडर जारी किया है, इसमें गांधी, सरदार, पंडित नेहरू, सुभाष चंद्र बोस आदि नेताओं के अलग-अलग अधिवेशन के फोटो को प्रमुखता से दिखाया गया है. ऐसे में महात्मा गांधी और सरदार पटेल की जन्मभूमि पर कांग्रेस किसी भी सूरत में खुद को मजबूत करना चाहती है.

कांग्रेस अधिवेशन के पोस्टर में महात्मा गांधी के साथ-साथ सरदार पटेल को भी महत्व दिया गया है. इस साल महात्मा गांधी के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की 100वीं वर्षगांठ है जबकि सरदार पटेल की 150वीं जयंती है. गांधी और पटेल दोनों ही गुजरात से थे. ऐसे में कांग्रेस ने कर्नाटक के उस बेलगावी में अपने सीडब्ल्यूसी की बैठक की थी, जहां 100 साल पहले महात्मा गांधी ने कार्यसमिति की अध्यक्षता की थी. अब कांग्रेस ने महात्मा गांधी और सरदार पटेल के गुजरात को मंथन के लिए चुनाव है. इस तरह कांग्रेस की कोशिश बीजेपी से सरदार पटेल की लेगेसी वापस लेने की है. इसीलिए अधिवेशन के लिए साबरमती आश्रम और सरदार स्मारक जैसी जगहों को चुना गया है.

कांग्रेस को जब मिली थी संजीवनी

कांग्रेस गुजरात में दूसरी बार अधिवेशन कर रही है. पिछली बार गुजरात में कांग्रेस अधिवेशन छह दशक पहले 1961 में भावनगर में हुआ था. इसके बाद से कांग्रेस ने एकतरफा बढ़त बनाई और गुजरात समेत कई राज्य और केंद्र सरकार में लंबे समय तक काबिज रही. 64 साल बाद गुजरात के अहमदाबाद में फिर से कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हो रहा है, जिसमें पार्टी के भविष्य की राजनीतिक दिशा पर विचार-विमर्श किया जाएगा. कांग्रेस के हाथों से एक के बाद एक राज्य फिसलते जा रहे हैं तो देश की सत्ता से कांग्रेस 11 साल से बाहर हैं. अब 64 साल बाद कांग्रेस ने एक बार फिर अगर गुजरात का रुख किया है तो इसके पीछे कहीं न कहीं गुजरात में अपना दरका हुआ किला फिर से पाने की चाहत है.

साल 2025 में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि 2026 में पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी जैसे राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस लिहाज से कांग्रेस की यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 2019 की तुलना में दोगुना सीटें जीती थी जिसके बाद पार्टी नेताओं को जबरदस्त हौसला मिला था, लेकिन उसके बाद कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. कांग्रेस हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में मिली हार से हताश हुई है. ऐसे में कांग्रेस गुजरात में मंथन कर बीजेपी से मुकाबला करने की स्ट्रैटेजी तैयार करेगी.

मोदी-शाह के गढ़ से कांग्रेस भरेगी हुंकार

राहुल गांधी ने कांग्रेस अधिवेशन के लिए ऐसे ही गुजरात को नहीं चुना बल्कि सोची-समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. नरेंद्र मोदी ने गुजरात में एक मॉडल बनाया, जिसे बीजेपी पॉलिटिकल वेपन के तौर पर इस्तेमाल करती है. नरेंद्र मोदी गुजरात मॉडल के दम पर ही 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने. गुजरात को बीजेपी ने सियासी प्रयोगशाला बनाया है, 1995 के बाद से उसे कोई मात नहीं दे सका. पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने गुजरात को ‘विकास का मॉडल’ बताकर देश के सामने पेश किया, जो बीजेपी के जीत की संजीवनी बनी.

2024 के लोकसभा चुनाव के बाद से राहुल गांधी ने दो बार गुजरात का दौरा किया और अब कांग्रेस का दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन गुजरात में हो रहा है. 2014 में पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने लंबे समय से सत्ता में रही कांग्रेस को बाहर करने के लिए जिस गुजरात मॉडल का नरैटिव दिया. बीजेपी और पीएम मोदी ने गुजरात मॉडल को विपक्ष, खासकर कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल किया. बीजेपी ने इसके जरिए दिखाया कि कांग्रसे के पास ऐसा कोई ठोस मॉडल नहीं है, जबकि बीजेपी के पास गुजरात जैसा ‘सफल’ मॉडल है. बीजेपी के गुजरात मॉडल को तोड़ने के लिए कांग्रेस ने गुजरात को ही चुना है. कहा जा रहा है कि इस अधिवेशन के जरिए कांग्रेस का मकसद यहां से देश के लिए एक नया मॉडल व नई सोच पेश करना है. इसलिए कांग्रेस ने इस अधिवेशन की टैग लाइन तय की है- ‘न्याय पथ… संकल्प, समर्थन व संघर्ष’.

गुजरात को जीतने की कांग्रेस की लालसा

पीएम मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य गुजरात है. कांग्रेस तीन दशक से गुजरात की सत्ता से बाहर है और बीजेपी इसे अपनी सियासी प्रयोगशाल बना चुकी है. ऐसे में अगर कांग्रेस बीजेपी को मात देने में सफल रहती है तो फिर उसके सियासी संदेश दूर तक जाएंगे. कांग्रेस गुजरात में सर्वाधिक कमजोर स्थिति में है. ऐसे में गुजरात में अगर मजबूत होती है तो कांग्रेस देशभर में और खासकर विपक्ष के दूसरे दलों को यह बताने में सफल होगी कि बीजेपी का मुकाबला करने में कांग्रेस ही सक्षम है. इसी वजह से राहुल गांधी बीजेपी को उसके सबसे मजबूत गढ़ में ही घेरने की रणनीति बना रहे हैं, जिसके लिए सियासी एक्सरसाइज के लिए दो दिन मंथन करेगी.

2024 लोकसभा चुनाव के बाद से ही राहुल गांधी का प्राइम फोकस गुजरात है. पिछले साल जुलाई में संसद सत्र के दौरान राहुल गांधी ने बीजेपी को चैलेंज करते हुए कहा था कि हम गुजरात में बीजेपी और मोदी को हराएंगे. आप लिखकर ले लो आपको (बीजेपी)इंडिया गठबंधन गुजरात में हराने जा रहा है. अधिवेशन 2027 के गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस की स्ट्रैटजी का आधार तैयार करेगा. पार्टी इसे गुजरात में संगठन की ताकत बढ़ाने और बीजेपी को चुनौती देने के रूप में देख रही है. इसके अलावा इस अधिवेशन के जरिए पार्टी गुजरात और नेशनल लेवल पर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है, लेकिन कांग्रेस के लिए आसान नहीं है.

BJP की प्रयोगशाला में कांग्रेस का एक्सपेरिमेंट

गुजरात बीजेपी की सियासी प्रयोगशाला रही है, जहां वो नए-नए एक्सपेरिमेंट करती रहती है. बीजेपी समय-समय पर परंपरागत राजनीति से हटकर कई सफल प्रयोग करती रही है और उसका उसे राजनीतिक लाभ मिलता रहा है. 1995 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपनी सियासी जड़ें ऐसी जमाई की आज तक कांग्रेस उसे उखाड़ नहीं सकी. गुजरात की सत्ता से बाहर होने के बाद से कांग्रेस का वनवास जारी है. गुजरात में बीजेपी को हराने की काट कांग्रेस नहीं तलाश सकी और कांग्रेस धीरे-धीरे सियासी हाशिए पर पहुंच गई है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मध्य वर्ग और शहरी इलाकों में अब भी बहुत लोकप्रिय हैं. कांग्रेस नेता माधव सोलंकी के खाम (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमान) गोलबंदी के जवाब में बीजेपी ने पटेल, बनिया, जैन और ब्राह्मणों को एकजुट किया था. बीजेपी ने जिन जातियों को एकजुट किया वे सामाजिक रूप से बहुत प्रभावशाली थीं. गुजरात में आरक्षण विरोधी और हिंदुत्व की राजनीति के बीच एक संबंध रहा है और बीजेपी ने इसे रणनीति के तहत साधा. मुसलमानों को खतरे के रूप में बीजेपी स्थापित करने में कामयाब रही और गुजरात के हिंदुओं को इसी नैरेटिव के तहत एकजुट किया. इसके बदौलत ही बीजेपी लगातार चुनावी जंग फतह करती आ रही.

गुजरात में कांग्रेस को लेकर एक छवि बनी है कि वह बीजेपी को हराने में सक्षम नहीं है. कांग्रेस के पास बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला करने के लिए कोई ठोस नैरेटिव नहीं है. कांग्रेस को सूबे के सत्ता से बाहर हुए तीन दशक होने जा रहे हैं, जिसके चलते पार्टी के तमाम दिग्गज नेता साथ छोड़कर जा चुके हैं और कार्यकर्ता का मोहभंग हो गया है. इस तरह से राज्य में कांग्रेस के पास फिलहाल एक सांसद और 12 विधायक ही बचे हैं. ऐसे में बीजेपी के सियासी समीकरण के जवाब में गुजरात में अपनी नई सोशल इंजीनियरिंग बनाने में जुटी है. माना जा रहा है कि कांग्रेस 2027 के गुजरात विधानसभा चुनाव के साथ-साथ देश की राजनीति में उभरने की रणनीति बनाने का काम करेगी.

कांग्रेस को गुजरात में क्यों दिख रही उम्मीद?

गुजरात में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, लेकिन उसके बाद भी उसे अपने लिए सियासी उम्मीदें दिख रही है. पहली बात यह है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस को लग रहा है कि उसकी जगह आम आदमी पार्टी ने कब्जाई था, अब वो उसे दोबारा वापस पा सकती है. गुजरात में तीन दशक से बीजेपी सत्ता में है, जिसके चलते उसके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के उभरने की उम्मीद मानी जा रही. पीएम मोदी की उम्र 75 साल पहुंच रही है. नरेंद्र मोदी के गुजरात में सीएम रहते हुए बीजेपी की जड़े काफी मजबूत हुई है, जिसके चलते कांग्रेस को लग रहा है कि उसे उभरने का यही सही समय है.

कांग्रेस भी बीजेपी की तरह गुजरात को ही प्रयोगशाला बनाने की रणनीति पर काम कर रही है. गुजरात में कांग्रेस अभी मुख्य विपक्षी दल है. कांग्रेस का विधानसभा चुनाव से ढाई साल पहले गुजरात में दो दिवसीय बैठक कर सियासी संकेत देना चाहती है. गुजरात में खिसकते जनाधार और साथ छोड़ते नेताओं के बीच कांग्रेस क्या 2027 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हरा पाएगी? राहुल ने चैलेंज करते हुए कहा था कि अगले चुनाव में बीजेपी को गुजरात में हराएंगे. सियासत में कुछ भी असंभव नहीं है, लेकिन कांग्रेस के मौजूदा सियासी आधार को देखते हुए यह काफी मुश्किल लग रहा है. पंचायत से लेकर प्रदेश की सत्ता पर पूरी तरह बीजेपी का एकछत्र राज कायम है.

कांग्रेस को लग रहा है कि गुजरात में बीजेपी नरेंद्र मोदी के चलते सियासी बुलंदी पर है. 2027 तक पीएम मोदी का सियासी जादू लोगों के सिर से उतर जाएगा और उसके चलते बीजेपी को हरा देंगे. यह गुजरात में इतना आसान नहीं है, क्योंकि बीजेपी की यह सियासी प्रयोगशाला रही है. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस गुजरात में दो दिनों तक मंथन कर क्या सियासी दशा और दिशा तय करती है.

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