बॉर्डर खाली-हिरासत में नेता…क्या खत्म हो गया किसानों का आंदोलन, समझिए कहां से कहां तक चली ये लड़ाई

पिछले एक साल से बंद शंभू बॉर्डर को आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा. यहां से किसानों के टेंट को हटा दिया गया है. बैरिकेड हटाए जा रहे हैं. किसान नेता सरवन सिंह पंधेर और जगजीत सिंह डल्लेवाल समेत करीब 200 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया है. किसानों के धरने की वजह से ही बॉर्डर 13 महीने से बंद था.

हालांकि अमृतसर-दिल्ली हाईवे पर टोल प्लाजा को किसानों ने बंद कर दिया है. ये लोग शंभू बॉर्डर पर हुई पुलिस कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं. किसानों ने कहा कि उनका धरना तब तक जारी रहेगा जबतक उनके नेताओं को छोड़ा नहीं जाता. वहीं, पंजाब के मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि किसानों की मांगें केंद्र से हैं, इसलिए उन्हें दिल्ली में प्रदर्शन करना चाहिए, न कि पंजाब की सड़कों को जाम करना चाहिए.

कहां से शुरू हुई लड़ाई?

संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के नेतृत्व में किसान पिछले साल 13 फरवरी से पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू (शंभू-अंबाला) और खनौरी (संगरूर-जींद) सीमा पर डेरा डाले हुए थे. वे दिल्ली कूच कर रहे थे. पुलिस ने भी दिल्ली को किले में तब्दील कर दिया था. सुरक्षा तगड़ी कर दी गई थी, जिसके कारण किसान दिल्ल में प्रवेश नहीं कर पाए थे. वे रोके जाने से नाराज हो गए, जिसके बाद वे शंभू बॉर्डर पर ही धरने पर बैठ गए.

किसान एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी के अलावा, कर्ज माफी, किसानों और कृषि मजदूरों के लिए पेंशन, बिजली दरों में बढ़ोतरी नहीं, किसानों के खिलाफ पुलिस मामलों को वापस लेने, उत्तर प्रदेश में 2021 लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए न्याय, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को बहाल करने और 2020-21 में पिछले आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं.

इस धरने से पहले किसान 2020 में दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे थे. वे मोदी सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे थे. बाद में सरकार किसानों के सामने झुक गई थी और तीनों कृषि कानूनों को वापस ले ली थी. सरकार के इस कदम के बाद किसानों भी धरने से हट गए थे.

किसानों ने प्रदर्शन कृषि कानूनों को रद्द करने और उपज के लिए गारंटीकृत मूल्य और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आपराधिक मामलों को वापस लेने सहित अन्य मांगों पर चर्चा करने पर सहमति व्यक्त करने के बाद खत्म किया था. लेकिन 3 साल बाद किसान फिर बॉर्डर पर जमा हो गए. उन्होंने कहा कि वे सरकार को उस समय किए गए वादों की याद दिलाना चाहते हैं.

किसानों का कहना है कि सरकार ने 2020-21 के विरोध प्रदर्शन के दौरान किए गए वादों को पूरा नहीं किया है. वे पेंशन की भी मांग कर रहे हैं और सरकार से अपने कर्ज माफ करने की मांग कर रहे हैं. किसानों ने कहा है कि नकली बीज, कीटनाशक और खाद बेचने वालों को दंडित किया जाना चाहिए. वे चाहते हैं कि सरकार ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत कार्य दिवसों की संख्या दोगुनी करके 200 करे. प्रदर्शनकारी यह भी चाहते हैं कि भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) से हट जाए और सभी मुक्त व्यापार समझौतों को खत्म कर दे.

कहां तक पहुंची लड़ाई?

किसान नेताओं और केंद्र सरकार के बीच 7 दौर की बातचीत हो चुकी है. लेकिन कोई सहमति नहीं बन सकी. आखिरी बैठक 19 मार्च यानी कल हुई थी, जिसमें पंजाब सरकार के मंत्री हरपाल चीमा भी मौजूद थे.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों को कहा है कि MSP लागू करने की बातचीत को आगे बढ़ाने से पहले वो इस मामले से सीधे तौर पर जुड़े सभी स्टेकहोल्डर्स जिसमें कंज्यूमर, व्यापारी, आढ़ती और अन्य वर्गों के लोग हैं उनकी भी राय लेंगे और उसके बाद 4 मई को चंडीगढ़ में ही अगले दौर की बातचीत की जाएगी.

उधर कल की बैठक से पहले किसान नेता पंधेर ने कहा था कि किसानों को उम्मीद है कि सरकार उनके समस्या का समाधान करेगी. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि एमएसपी गारंटी कानून पर गतिरोध समाप्त होगा और बातचीत आगे बढ़ेगी.

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