दूध बेचने आए थे, भोपालियों ने ब्रांड बना दिया

भोपाल: त्योहार में मिठाइयों की बात हो या फिर फैमिली के साथ लंच या डिनर का प्लान, भोपालियों के लिए एक ऑप्शन मनोहर स्वीट्स और रेस्टोरेंट तो होता ही है। सालों से राजधानी के दिल में बसने वाले मनोहर की कहानी से शायद ही कोई वाकिफ है। इस दिवाली लेकर आया है मनोहर डेयरी से स्वीट्स एंड रेस्टोरेंट और फिर ब्रांड बनने की कहानी।इस बारे में हमने मनोहर स्वीट्स एंड रेस्टोरेंट के ओनर हिरवानी फैमिली से बात की तो कई रोचक बातें हमें पता चलीं।जानते हैं, इस ब्रांड की कहानी मनोहर और मुरली हिरवानी की जुबानी…यह बात लगभग 1950 की होगी, जब पिताजी श्याम सुंदर हिरवानी भारत-पाकिस्तान के पार्टीशन के दौरान सिंध से इंदौर आकर बस गए। सब कुछ छोड़कर आने के बाद उन्होंने इंदौर में जीरो से शुरुआत की। सबसे पहले उन्होंने इंदौर शहर के सेंट एडवर्ड हॉस्पिटल के पास चाय के स्टॉल से शुरुआत की। इंदौर में उन्हें सब साईं के नाम से जानते थे। सिंधी भाषा में आदर के तौर पर साईं कहा जाता है। जैसे ‘सेठ’ या ‘श्री’। उस दौर में शहर के सभी लोग उन्हें काफी सम्मान देते थे।इसके बाद पिताजी ने कॉलेज के ठेके लेना शुरू किया। कई कॉलेज में कैंटीन हुआ करती थी, उनमें से एक था होलकर कॉलेज। उस समय इंदौर का आर्ट्स और कॉमर्स सेक्शन होल्कर में एक ही हुआ करता था। कैंटीन में अच्छा रिस्पॉन्स मिलने के बाद साल 1956 में पिताजी ने इंदौर के जवाहर मार्ग पर ‘बॉम्बे रेस्टोरेंट की शुरुआत की।चाय से कैंटीन, कैंटीन से रेस्टोरेंट के बाद पिताजी ने दूध डेयरी के बिजनेस में हाथ आजमाने की शुरआत की। दूध में उन्होंने इतने बड़े पैमाने पर काम किया कि लोग उन्हें ‘मिल्क किंग’ के नाम से जानने लगे।दूध का काम काफी बढ़ गया। इसके बाद पहली बार पिताजी ने अहमदाबाद में ऐसी डेयरी खोली, जहां पनीर की कमर्शियल सेलिंग की शुरुआत हुई। उस डेयरी का नाम स्वस्तिक डेयरी था।यह सब हो चुका था, इसके बाद मेरा जन्म हुआ। पिताजी ने मेरा नाम ‘मनोहर’ रखा और इंदौर में ही एक मनोहर डेयरी की शुरुआत हुई। वहां दूध से जुड़े सारे प्रोडक्ट्स बेचे जाते थे। लेकिन, समय बीता और हमारी किस्मत हमें पूरी तरह इंदौर से झीलों की नगरी भोपाल ले आई।1970 की बात है, जब इंदौर में मनोहर डेयरी चली, उस वक्त भोपाल में दूध की काफी दिक्कत हुआ करती थी। भोपाल में अच्छा दूध नहीं मिलता था। मनोहर का पहले स्वीट्स और रेस्टोरेंट का नहीं, बल्कि डेयरी का काम था। भोपाल आकर हमें चिलिंग प्लांट लगाकर बस दूध बेचना था। डेयरी के प्रोडक्ट्स के साथ हमने स्वीट्स की शुरुआत की। फिर रेस्टोरेंट भी शुरू हुआ। लेकिन, यहां के स्वीट्स को इतना रिस्पॉन्स मिला कि डेयरी के सभी प्रोडक्ट बंद कर दिए गए और मिठाइयों पर फोकस बढ़ गया।जॉइंट फैमिली ही हमारी ताकतरेस्टोरेंट की फैक्ट्री संभाल रहे मुरली हिरवानी ने कहा, हमारी जॉइंट फैमिली ही हमारी ताकत है। पूरे परिवार का खाना एक किचन में बनता है। सभी एक घर में रहते हैं।मुरली हिरवानी ने बताया यादगार किस्सामुझे याद है एक बार भोपाल 3 दिनों के लिए बंद था। उस वक्त पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भोपाल आई थीं। हम कई रेस्टोरेंट और होटल वाले उनसे मिलने पहुंचे। सभी ने अपना परिचय दिया। मैंने बताया कि मैं मनोहर डेयरी से हूं। तो सुषमा जी ने तुरंत कहा- अच्छा, आपकी मनोहर डेयरी है। मैंने कहा जी हां ! उन्होंने कहा आपके यहां की मिठाइयां हमे बहुत पसंद हैं। उस वक्त मेरा बस एक ही जवाब था ‘आप हमारा नाम जानतीं हैं, यही हमारे लिए बहुत बड़ी बात है।’ सुषमा जी ने फिर इस बात पर इतनी सारी डिशेस गिना दीं कि मैं बस उन्हें सुनता रह गया।

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