कालापीपल-वैसे तो दिपो का पर्व दिपावली हर जगह अपने पारंपरिक ढंग व धुमधाम से मनाते है पर हर साल आज के ही दिन कालापीपल तहसील के खोकरा कलाँ मे बडे हर्ष उल्लास और भारतीय पारंपरिक तरीके दिपावली मनती है !
जी हाँ युं तो दिपावली की शुरुआत धनतेरस की दिन से ही हो जाती है ओर उस दिन गाँव के सभी लोग अपने घर पर धन की पुजा करते है !
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पर यहा ग्राम-खोकरा कलाँ मे असली धन की पुजा होती गाय की जिसको हम गौमाता कहते है इसके बाद आती है छोटी दिवाली इसे रुप चतुर्दशी कहते है इस पुजा का भी बडा महत्व है इस दिन रात को दीप दान की प्रथा है जो यमराज को किया जाता है बहुत ही पुरानी परांपरा ! अब अगली सुबह लक्ष्मी पुजन की दिन गावों मे सुबह बैलों का श्रांगर करके ढोल ढामाके के साथ भव्य अतिशबाजी गाँव के प्रमुख मार्गो से जुलुस धुमधाम से निकाला जाता है कहाँ जाता है कि यहाँ बैलों का जुलुस निकलना बहुत ही पुरानी परांपरा है जो आज भी कायम है और ऐसा जुलुस शाजापुर जिले के किसी भी गाँव मे नही निकलता है फिर रात को लम्क्षी पुजन के बाद बैलों को मेहंदी लगा कर हिढ गाते है जो बैलो के लिए एक प्रकार का गीत है.