राष्ट्रवादी छवि के सहारे असदुद्दीन ओवैसी क्या हिंदुओं के दिल में जगह बना पाएंगे?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद से ही ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख सांसद असदुद्दीन ओवैसी अलग ही तेवर और नए सियासी कलेवर में नजर आ रहे हैं. पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ ओवैसी ने इन दिनों उसी तरह से आक्रामक रुख अपना रखा, जैसे बीजेपी नेता अपना रहते हैं. बिहार के ढाका में सिर पर तिरंगा पगड़ी बांधे ओवैसी ने आतंकवाद के खिलाफ जिहाद का ऐलान करते हुए कहाकि अब पाकिस्तान को समझाने का समय नहीं है, अब उसे करारा जवाब देने का वक्त आ गया है.

बिहार में ढाका में रैली में तिरंगा पगड़ी बांधे ओवैसी मंच पर आए तो नारों से पूरा मैदान गूंज उठा. ओवैसी के मंच पर एक बड़ा सा बैनर लगा था, जिसपर लिखा गया था ‘आतंकवाद के खिलाफ ओवैसी का जिहाद’. पहलगाम हमले के बाद से ओवैसी पाकिस्तान करारा जवाब दे रहे हैं और आतंकवाद को जड़ से मिटाने की बात कर रहे हैं. इस तरह से ओवैसी राष्ट्रवादी चेहरा बनकर उभरे हैं, लेकिन सवाल यही है कि मुस्लिम परस्त छवि से बाहर निकलकर हिंदू समुदाय के दिल में जगह बना पाने में सफल होंगे?

ओवैसी की मुस्लिम परस्त छवि

AIMIM के नेता इम्तियाज जलील चुनौती देते हुए कहते रहे हैं कि मुसलमानों का उतना ही लोकप्रिय नेता बता सकते हैं, जितना असदुद्दीन ओवैसी साहब हैं? इतना डट कर, जम कर बोलने वाले, संसद के अंदर मुसलमानों के लिए किसी और मुस्लिम नेता का नाम बता दीजिए? किसी भी राज्य और शहर में पूछ लीजिए ओवैसी के सिवा कोई दूसरा नाम नहीं मिलेगा. इम्तियाज जलील ही नहीं AIMIM के सभी नेता बोलते हैं. AIMIM की बात सही भी है कि सड़क से संसद तक मुस्लिमों से जुड़े मुद्दे पर ओवैसी सबसे मुखर रहते हैं, यही उनकी सबसे बड़ी लोकप्रियता कारण भी बनी है.

देश में चाहे बाबरी मस्जिद पर फैसले का मुद्दा रहा हो, तीन तलाक का मुद्दा रहा हो या ‘लव जिहाद का मुद्दा हो या फिर सीएए-एनआरसी की बात रही हो. वक्फ संशोधन बिल की मुखालफत हो. ओवैसी खुलकर बोलते नजर आए हैं. वो अक्सर दूसरे नेताओं की तुलना में बेहतर तर्क देते और अपनी बात को मजबूती से रखते हैं.

मुस्लिमों के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाकर तथाकथित सेकुलर कहलाने वाले दलों को निशाने पर लेते रहे हैं. इस तरह से मुस्लिम समुदाय के बीच ओवैसी ने खुद को एक मसीहा के तौर पर स्थापित किया. ओवैसी अपनी इसी मजबूत पहचान के सहारे तेलंगाना ही नहीं महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश में सियासी जड़े जमाने में भी कामयाब रहे.

मुस्लिम पर ओवैसी की सियासत

मुस्लिम वोटों के सहारे ओवैसी ने अपनी पार्टी को हैदराबाद के चारमीनार इलाके से निकालकर देश में एक नई पहचान दिलाई. हैदराबाद से ओवैसी लगातार सांसद हैं तो तेलंगाना के सात विधायक AIMIM के हैं. ऐसे ही महाराष्ट्र की दो सीटों पर ओवैसी लगातार तीसरी बार जीत दर्ज करने में कामयाब रहे हैं. 2020 में बिहार की पांच विधानसभा सीटें AIMIM ने जीतीं थी. इसके अलावा यूपी से लेकर बिहार और गुजरात तक में ओवैसी की पार्टी को पहचान मिली हैं, लेकिन मुस्लिम इलाके तक ही पार्टी का सियासी आधार टिका हुआ है.

AIMIM के राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद ओवैसी हैं और प्रदेश अध्यक्ष भी सभी मुस्लिम हैं. महाराष्ट्र में इम्तियाज जलील, दिल्ली में शोएब जमाई, उत्तर प्रदेश में शौकत अली और बिहार में अख्तरुल इमान के हाथों में पार्टी की कमान है. AIMIM के संगठन पर पूरी तरह मुस्लिमों का कब्जा है. इसके अलावा AIMIM के टिकट पर जीतने वाले विधायक और सांसद सभी मुस्लिम रहे हैं. इतना ही नहीं चुनाव में भी ज्यादातर टिकट ओवैसी मुस्लिमों को ही देते रहे हैं. इस तरह ओवैसी की पूरी सियासत मुस्लिमों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है, जिसके चलते हिंदू वोटर उनसे दूरी बनाए है.

AIMIM पर पूरी तरह से मुस्लिमों का ही दबदबा है, खासकर अपर क्लास मुस्लिम जातियों का. ओवैसी की मुस्लिम परस्त वाली सियासत के चलते हिंदू समुदाय के बीच पैठ नहीं जमा सकी. ओवैसी भी समझ रहे हैं कि मुस्लिम परस्त छवि के सहारे अपनी पार्टी को राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाने में सफल नहीं होंगे. हार्ड कोर मुस्लिम पॉलिटिक्स के सहारे सेकुलर पार्टियां भी उनसे दूरी बनाकर चलती हैं. ऐसे में ओवैसी पहलगाम हमले के बाद से अपनी मुस्लिम परस्त वाली छवि को तोड़ने और राष्ट्रवादी छवि गढ़ने में जुट गए हैं.

ओवैसी की राष्ट्रवादी छवि बनी?

मुस्लिमों पर केंद्रित राजनीति करने वाले असदुद्दीन ओवैसी पहलगाम हमले के बाद अलग तेवर और कलेवर में नजर आ रहे हैं. बिहार के ढाका में ओवैसी ने कहा कि अब पाकिस्तान को समझाने का समय नहीं है. अब उसे करारा जवाब देने का वक्त आ गया है. उन्होंने कहा कि कब तक हम पाकिस्तानी आतंकियों के हाथों अपनी बहन-बेटियों को विधवा होते देखेंगे. ओवैसी ने सरकार से मांग की है कि वो मजबूत और ठोस कार्रवाई करे, जो भी इस हमले के लिए जिम्मेदार हैं,उन्हें सख्त सजा मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि देश को एकजुट होकर आतंकवाद कामुकाबला करना होगा और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना होगा. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इस मामले में भारत सरकार को पूरा समर्थन देगी. पहलगाम आतंकी हमले में मारने वाले सभी लोगों को शहीद का दर्जा देने की मांग ओवैसी ने उठाई.

पहलगाम हमले के बाद से ओवैसी ने पाकिस्तान और आतंकवाद के विरोध में आक्रामक तेवर अपना रखा है.ओवैसी ने जिस तरह से सख्त रुख अपना रखा हैं और पाकिस्तान पर चुन-चुनकर हमले कर रहे हैं, उससे उनकी राष्ट्रवादी छवि निकलकर लोगों के सामने आई हैं. ओवैसी जिस तरह से पाकिस्तान को औकात दिखा रहे है और आतंकवाद के खिलाफ जिहाज का ऐलान किया हैं, उसके पीछे उनकी सोची-समझी रणनीति भी मानी जा रही है. ओवैसी अपने सख्त तेवर से पाकिस्तान को जरूर आइना दिखा रहे हैं, लेकिन साथ ही सियासी एजेंडा करने की कवायद में है.

हिंदुओं का विश्वास जीत पाएंगे ओवैसी

देश की हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने की कवायद में है, क्योंकि पहलगाम हमले में आतंकियों ने धर्म को आधार बनाकर लोगों को मारा है, उससे असर देश के मुस्लिमों पर भी पड़ सकता है. ओवैसी भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान की पहचान से दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं और भारतीय पहचान के साथ रखने की कोशिश में है. इसके अलावा उनकी कोशिश मुस्लिमों के साथ-साथ हिंदू समुदाय के बीच पैठ जमाने की है, क्योंकि मुस्लिम वोटों के सहारे एक- दो सीटें ही जीतने में सफल रह सकते हैं, उससे ज्यादा नहीं. ओवैसी की नजर अपनी पार्टी को राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलानी की है, जिसके लिए मुस्लिमों के साथ-साथ हिंदू वोटों की दरकरार है.

2020 के बिहार चुनाव में AIMIM के टिकट पर जीते सभी पांचों विधायक मुस्लिम थे, जिनमें से 4 ने पार्टी छोड़कर आरजेडी ज्वाइन कर ली है. इस बार ओवैसी की रणनीति मुस्लिमों के साथ हिंदुओं की बड़ी संख्या में टिकट देने की है. पूर्वी चंपारण का ढाका विधानसभा सीट मुस्लिम बहुल है, जहां से ओवैसी ने राणा रंजीत सिंह को AIMIM का प्रत्याशी भी बना दिया है. ऐसे में अगर राणा रंजीत हिन्दुओं का वोट अगर यहां पर थोड़ा-बहुत अपने पाले में करने में कामयाब रहते हैं तो उनकी राह आसान हो सकती है.

ओवैसी ने बिहार में इस बार 24 विधानसभा सीटें जीतने का दावा किया है. माना जाता है कि ओवैसी अपने इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए मुस्लिम परस्त छवि से बाहर निकलकर राष्ट्रवादी छवि गढ़ने में जुटे हैं ताकि मुस्लिमों के साथ हिंदू वोटों की सियासी केमिस्ट्री बनाई जा सके. ऐसे में देखना है कि हिंदू समुदाय का विश्वास वो जीत पाते हैं कि नहीं?

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