बसपा में सियासी बदलाव कर तेवर में लौट रहीं मायावती, 2027 में किसका बढ़ाएंगी सिरदर्द?

उत्तर प्रदेश की सियासत में हाशिए पर खड़ी बसपा को मायावती 2027 के पहले एक्टिव करने में जुटी हैं. मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद और उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ को बसपा से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद एक नए सियासी तेवर में नजर आ रही हैं. बसपा प्रमुख इन दिनों मुस्लिमों से जुड़े हुए मुद्दों को मुखर होकर उठा रही हैं और बीजेपी को कठघरे में खड़ा कर रही हैं. इस तरह से बसपा लगातार राजनीतिक चर्चाओं में बनी हुई है तो मायावती के बदले हुए तेवर के सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं?

बसपा का चुनाव दर चुनाव आधार सिमटता जा रहा है. बसपा 2024 में खाता नहीं खोल सकी और 2022 के यूपी चुनाव में सिर्फ एक सीट ही जीत सकी थी. बसपा का वोट शेयर 9.39 फीसदी पर आ गया है. बसपा अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है और पार्टी का गैर-जाटव दलित वोट पहले ही पार्टी से खिसक गया और अब जाटव वोट में भी सेंध लग गई है. ऐसे में मायावती के लिए बसपा के सियासी वजूद को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है और 2027 के विधानसभा चुनाव उभरने की कवायद में है, जिसके लिए सियासी तानाबाना बुना जाने लगा है.

बसपा में सियासी बदलाव

मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद और उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ को बसपा से बाहर कर दिया है तो उनकी जगह पर रामजी गौतम और रणधीर बेनीवाल को नेशनल कॉआर्डिनेटर नियुक्त किया है. रामजी गौतम लखीमपुर खीरी से हैं तो बेनीवाल सहारनपुर से हैं. यूपी में भी मायावती ने तमाम अहम बदलाव किए हैं. सूबे के मंडल के प्रभारियों को बदले हैं, लेकिन तीन मुस्लिम नेताओं को अहम जिम्मेदारी सौंप रखी है तो दलित और अतिपिछड़े समाज से आने वाले नेताओं को भी प्रभारी के तौर पर लगाया है.

बसपा के सियासी बदलाव को 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. मायावती ने हर मंडल में अब चार कोऑर्डिनेटर नियुक्त कर दिए हैं तो साथ ही दो जिला और दो विधानसभा प्रभारी भी बनाए हैं. मायावती ने बसपा नेताओं से कहा है कि मंडल स्तर पर संगठन में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के साथ मुस्लिमों को जोड़ने के मिशन में जुटे. मायावती इसी सियासी कॉम्बिनेशन के साथ 2007 में बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रहीं थी और अब फिर से उसी फॉर्मूले पर काम कर रही हैं.

सभी धर्मों के लोगों का सम्मान बराबर

सोशल मीडिया पर उन्होंने कहा कि इस समय रमज़ान चल रहे हैं और इसी बीच जल्दी होली का भी त्योहार आ रहा है, जिसे मद्देनज़र रखते हुये यू.पी. सहित पूरे देश में सभी राज्य सरकारों को इसे आपसी भाईचारे में तब्दील करना चाहिए तो यह सभी के हित में होगा. अर्थात् इसकी आड़ में किसी भी मुद्दे को लेकर कोई भी राजनीति करना ठीक नहीं. सभी धर्मों के अनुयायियों के मान-सम्मान का बराबर ध्यान रखना बहुत जरूरी. सम्भल की तरह अधिकारियों का गलत इस्तेमाल करना ठीक नहीं तथा इनको कानून व्यवस्था पर विशेष ध्यान देना चाहिए.

कांशीराम जयंती से बसपा मिशन-2027

बसपा कांशीराम की जयंती से 2027 के विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंकने जा रही है. बसपा 15 मार्च को कांशीराम जयंती का कार्यक्रम लखनऊ और नोएडा में मनाएगी. मेरठ मंडल के जिलों में पार्टी के लोग नोएडा में कांशीराम जयंती मनाएंगे जबकि लखनऊ मंडल के पार्टी नेता लखनऊ के कार्यक्रम में शिरकत करेंगे. इसके अलावा अन्य जिलों में भी पार्टी नेता कार्यक्रम का आयोजन करेंगे. इस तरह से कांशीराम की जयंती से बसपा मिशन-2027 का आगाज माना जा रही है.

मायावती ने साफ निर्देश दिए हैं कि अगले 6 महीने में पार्टी संगठन को न सिर्फ नए सिरे से खड़ा करना है, बल्कि इसे मजबूत करना है. बसपा के कैडर कैंप की बैठकें लगातार जारी है. यूपी के सभी प्रभारी अपने-अपने जोन की बैठकें कर रहे हैं, ये बैठकें जिला स्तर पर हो रही हैं. इसी बैठक में 2027 के लिए प्रत्याशी का चयन भी किया जा रहा है.

मायावती पुराने तेवर में लौटीं

मायावती पिछले दस दिनों से लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. पहले उन्होंने अपने भतीजे और उत्तराधिकारी आकाश आनंद को पार्टी से निष्कासित किया तो उसके बाद लगातार अपने ट्वीट से चर्चा में हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती ने पिछले दिनों रमजान में मस्जिदों से लाउडस्पीकर उतारे जाने की कार्रवाई पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी. मायावती ने कहा था कि भारत सभी धर्मों को सम्मान देने वाला धर्मनिरपेक्ष देश हैं. ऐसे में केन्द्र व राज्य सरकारों को बिना पक्षपात के सभी धर्मों के मानने वालों के साथ एक जैसा बर्ताव करना चाहिए, लेकिन अब मुसलमानों के साथ धार्मिक मामलों में भी जो सौतेला रवैया अपनाया जा रहा है, यह न्यायसंगत नहीं.

मायावती ने ट्वीट कर कहा कि उत्तराखण्ड सरकार की ओर से पहले कुछ मजारों और धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किए जाने के बाद अब राजधानी देहरादून में 11 प्राइवेट मदरसों को सील किए जाने की ख़बर की चर्चा. सरकार धार्मिक भावनाओं को आहत पहुंचाने वाली ऐसी द्वेषपूर्ण और गैर सेक्युलर कार्रवाईयों से जरूर बचे. इस तरह से मायावती मुसमलानों के मुद्दे पर खुलकर बोल रही हैं और बीजेपी को आड़े हाथों ले रही हैं.

बसपा की सक्रियता से किसे लाभ?

बसपा प्रमुख मायावती के जमीनी स्तर पर सक्रिय न होने का सियासी लाभ 2022 के चुनाव में सपा को मिला था तो 2024 में सपा-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में गया था. दलित समाज का बड़ा झुकाव इंडिया गठबंधन के साथ रहा, जिसका नतीजा रहा कि बसपा का खाता नहीं खुला. बसपा में हुए उथल-पुथल और मायावती की सक्रियता 2027 के चुनाव से जोड़कर देखी जा रही है.

मायावती नेआकाश आनंद की जगह रामजी गौतम और रणधीर बेनीवाल को नेशनल कॉआर्डिनेटर नियुक्त किया है. रामजी गौतम 2020 में बीजेपी की मदद से ही राज्यसभा सदस्य चुने गए थे. उस समय विधानसभा में बसपा के केवल 19 सदस्य थे, जो राज्यसभा की सीट हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं थे. त​ब भाजपा ने अपने अतिरिक्त वोट रामजी गौतम को हस्तांतरित कर दिए थे.

2027 के चुनाव के लिहाज से किया जा रहा है बदलाव

बसपा में सियासी बदलाव को 2027 के चुनाव के लिहाज से किया जा रहा है. ऐसे में जाटव वोट किस तरफ जाता है, उससे बहुत कुछ तय होगा. यूपी में 22 फीसदी दलित वोटर हैं, जिसमें 50 फीसदी से ज्यादा जाटव समाज का वोट हैं. मायावती के सियासी उतार-चढ़ाव के हर दौर में जाटव समाज उनके साथ जुड़ा रहा है. 2024 के लोकसभा चुनावों में बसपा का वोट शेयर गिरकर 9.39 फीसदी पर आ गया. इससे साफ जाहिर होता है कि जाटव समाज भी उनसे दूर हो रहा.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर जाटव कांग्रेस के साथ चले गए थे. बसपा के सियासी उदय से पहले तक जाटव समाज कांग्रेस के समर्थक रहे थे. यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि दलित एकमत होकर वोट नहीं देते हैं. यही कारण था कि जहां जाटवों ने कांग्रेस का साथ छोड़कर बसपा का दामन थामा, वहीं वाल्मीकि और पासी जैसे अन्य दलित समुदाय भाजपा की ओर मुड़ गए.

2027 के लिए भाजपा के गेम प्लान की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि मायावती जाटव वोटों का एक बड़ा हिस्सा अपने पास बनाए रखें, ताकि कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनावों में हुए लाभ को बरकरार न रख सके. 2027 के लिए बीजेपी के गेम प्लान की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि मायावती जाटव वोटों का एक बड़ा हिस्सा अपने पास बनाए रखें, ताकि इंडिया गठबंधन यानी सपा-कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनावों में हुए लाभ को बरकरार न रख सके.

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