बिहार: नीचे मछली पालन-ऊपर बिजली उत्पादन अभियान, ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए CM नीतीश कुमार की नई पहल
हरित बिजली उत्पादन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसमें सोलर सिस्टम के माध्यम से तालाब से बिजली का उत्पादन किया जाता है. इससे विभाग और स्थानीय लोगों को फायदा हो रहा है. यह कार्य जमीन पर भी किया जा सकता था लेकिन बिहार में खाली जमीन की कमी की वजह से नीचे मछली और ऊपर बिजली उत्पादन किया जा रहा है.
बिहार सरकार का मानना है कि राज्य में 9 लाख हेक्टेयर नमी वाली भूमि है, जहां मछली का उत्पादन हो सकता है. राज्य सरकार इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. तीसरा कृषि रोड मैप में मछली-उत्पादन पर जोर दिया गया है. तालाबों में नीचे मछली, ऊपर बिजली उत्पादन से कई फायदे हो रहे हैं.
मछली उत्पादन से आर्थिक पक्ष होगा मजबूत
बिजली उत्पादन से एक तरफ अर्निंग का स्रोत मजबूत होता है तो दूसरी तरफ मछली उत्पादन से सरकार आर्थिक रूप से और मजबूत होती है. इससे तीसरा फायदा ये होता है, जो तालाब में सोलर प्लेट के माध्यम से ग्रीन बिजली उत्पादन करने से वाटर कॉलिंग की समस्या खत्म हो जाती है. इस पर सरकार की होने वाली मोटी खर्च बच जाती है. बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है एवं यहां की जमीन काफी उपजाऊ है. सौर ऊर्जा के लिए सोलर पैनल लगाने के लिए जमीन की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती है. इसके समाधान के लिए राज्य में जलाशयों पर फ्लोटिंग सोलर पॉवर प्लांट लगाया जा रहा है,जिसे नीचे मछली ऊपर बिजली का नाम दिया गया है.
दरभंगा और सुपौल में पावर प्लांट स्थापित
इसके तहत दरभंगा जिले में 16 मेगावाट तथा सुपौल जिला में 525 केबी क्षमता का फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट को स्थापित किया जा चुका है. तालाब में पानी के नीचे मछली पालन होता है तो पानी के ऊपर से बिजली उत्पादन किया जा रहा है. इसी तालाब से सटे बिजली विभाग का एक पावर सब-स्टेशन भी बनाया जा रहा है,जिसके माध्यम से इस सोलर एनर्जी को पावर ग्रिड में पहुंचाया जाता है. उसके बाद शहर में इसकी आपूर्ति की जाएगी. इसी तरह का एक प्रोजेक्ट ब्रेडा ने सुपौल जिले में भी शुरू किया है.
कृषि और पशुपालन राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. राज्य की अर्थव्यवस्था में जितना योगदान कृषि का है,उसमें 30 फीसदी पशुपालन का भी योगदान है. बिहार में मछली उत्पादन की अपार संभावनाओं को देखते हुए नीतीश सरकार मछली-उत्पादन का दायरा बढ़ाना चाहती है. ऐसा होने से बिहार में उत्पादित मछली पूरे देश को खिलाया जा सकता है.
मत्स्य उद्योग को बढ़ावा देने की योजनाएं
बिहार में मीठे पानी की रेहू,कतला,मांगुर और बचवा की नेपाल और बांग्लादेश में जबरदस्त मांग है. मीठे जल में मछली उत्पादन में देश में बिहार चौथे स्थान पर है. जल संसाधन समृद्ध होने के बाद भी मछली-उत्पादन के मामले में बिहार पहले पिछड़ा हुआ था. बिहार की मंडी में कभी आंध्र प्रदेश की मछली का एकाधिकार हुआ करता था. इसको लेकर नीतीश सरकार ने गंभीरता से काम किया और मत्स्य उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं. इसके बेहतर परिणाम जल्द ही सामने आने लगे और मछली का उत्पादन बढ़ने लगा और देखते-देखते इस अवधि में मछली-उत्पादन ढाई गुना से अधिक हो गया.
उत्पादन बढ़ने से स्थानीय बाजारों में आंध्र प्रदेश की मछली का एकाधिकार समाप्त हो गया. राज्य में सालाना 510 लाख टन मछली का उत्पादन हो रहा है,जबकि प्रदेश में मछली की मांग 600 लाख टन सालाना की है. मछली का उत्पादन बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने नीचे मछली और ऊपर बिजली के कॉन्सेप्ट पर काम करना शुरु किया जिसका नतीजा है कि इसमें वृद्धि देखने को मिल रही है. साथ ही इसस धंधे से जुड़े किसानों की आय दोगुनी हो रही है और उनके आर्थिक स्थिति में बेहतर सुधार देखने को मिल रहा है.
बिहार में जलाशयों का सतत विकास अभियान
नीतीश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना,जिसमें मछली पालन के साथ-साथ हरित ऊर्जा पैदा करके जलाशयों का सतत् विकास के लिए उपयोग किया जा रहा है, जोअब तक सफल रही है. राज्य अब मछली बीज (जीरा) उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है. राज्य में 900 मिलियन मछली बीज की मांग है,जबकि अपना उत्पाद 793 मिलियन है. दो तिहाई मांग की आपूर्ति राज्य से हो रही है. मछली पालन में लोगों,खासकर युवाओं की दिलचस्पी बढ़ रही है. लोग इसे रोजगार के रूप में देख रहे हैं. मत्स्य-पालन के लिए प्रशिक्षण लेने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. प्रशिक्षण कार्यक्रम से राज्य में मछली और मछली बीज-उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी हुई है.