मकर संक्रांति पर प्रयागराज में महाकुंभ का शुभारंभ हो गया. संगम नगरी में बड़ी संख्या में साधु-संत और श्रद्धालु पधारे हुए हैं. कई अखाड़े भी महाकुंभ की शोभा बने हुए हैं. इनमें अखाड़ों के नागा साधु आकर्षण का केंद्र हैं. भीषण ठंड के बीच अपने शरीर पर भस्म रमाए नागा साधुओं ने पहले शाही स्नान में अपने निराले अंदाज में पवित्र गंगा में डुबकी लगाई. नागा साधु भगवान शिव के परम भक्त माने जाते हैं.
अक्सर सुनने में आता है कि न ये नागा साधु अपने शरीर पर मरघट की राख लगाते हैं. लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है. ये अपने शरीर पर खास किस्म की भस्म लगाते हैं. इसे कई तरह से तैयार किया जाता है.नागा साधुओं की चर्चा कुंभ पर होती है. इनका अपना अलग ही संसार होता है. कठोर तपस्या के साथ इनका जीवन सांसारिक सुखों से पूरी तरह दूर होता है. नागा साधु कपड़े नहीं पहनते. ये अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं, जिसे तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत की जाती है.
ऐसे तैयार होती है भस्म
जानकारी के मुताबिक, नागा साधु अपने शरीर पर जो भस्म रमाते हैं, वह सीधे धूनी से नहीं लगाई जाती. उसे कई प्रोसेज की जरिए तैयार किया जाता है. पहले इसके लिए लकड़ी की धूनी में जलाने से निकली राख को चंदन के लेप में मिलाकर गोलियां बनाई जाती हैं. फिर इन्हें गाय के उपलों की आग में पकाया जाता है. इसे ठंडा कर पीसते और छानते हैं. इस पाउडर को गाय के कच्चे दूध और चंदन में मिलाकर दोबारा से पकाया जाता है. इस तरह से यह भस्म बनकर तैयार हो जाती है, जिसे नागा साधु अपने शरीर पर लगाते हैं.
मां गंगा के प्रति रखते हैं अटूट आस्था
नागा साधु मां गंगा के प्रति गहरी आस्था रखते हैं. वह पवित्र गंगा स्नान के दौरान उसकी साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखते हैं. गंगा स्नान के दौरान उनका मैल या अन्य गंदगी नदी के पवित्र पानी में न चली जाए इसके लिए वह पहले अपने शिविरों में स्नान करते हैं, उसके बाद अपने शरीर पर भस्म रमाकर गंगा में पुण्य डुबकी लगाते हैं. नागा साधु अपने शरीर पर धार्मिक प्रतीक के रूप में भस्म लगाते हैं. वे इसे भगवान शिव की पवित्रता के प्रतीक के रूप में लगाते हैं.