दिल्ली की सियासत में आम आदमी पार्टी इस बार कुछ अलग ही प्रयोग कर रही है. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से अब तक 31 सीट पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. पहली लिस्ट में 11 और दूसरी में 20 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं. इस तरह से आम आदमी पार्टी ने चुनाव की घोषणा से पहले ही करीब 45 फीसद से अधिक प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है, लेकिन इसके साथ ही इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि इस जल्दबाजी के पीछे कारण क्या है और अरविंद केजरीवाल के माइंड में चल क्या रहा?
दिल्ली विधानसभा चुनाव का ऐलान अभी तक नहीं हुआ है, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान शुरू कर दिया है. सूबे की कुल 70 सीटों में से 31 सीट पर उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है और अब 39 सीटें शेष बची हुई हैं. केजरीवाल ने चुनाव से पहले ऐसे ही उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं कर रहे हैं बल्कि सोची-समझी रणनीति के तहत दांव चला है.
आम आदमी पार्टी ने चुनाव की घोषणा से करीब दो महीने पहले उम्मीदवारों के नाम का ऐलान शुरू कर दिया. सियासी जानकार कहते हैं कि ये अरविंद केजरीवाल का माइंड गेम है. इससे वो ये बताने की कोशिश करेंगे कि दिल्ली में उनके पास बीजेपी और कांग्रेस से बेहतर तैयारी है. ये भी मैसेज देना चाहती है कि चुनाव रणनीति में वो विरोधियों से काफी आगे है.
मौजूदा विधायकों का केजरीवाल ने काटा टिकट
कर्नाटक में कांग्रेस और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान चुनाव में बीजेपी ने भी ऐसी ही रणनीति अपनाई थी. चुनाव ऐलान से पहले उम्मीदवार उतारे थे, जो हिट रहा. अब यही दांव आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में आजमाया है. इस बार अरविंद केजरीवाल ने अभी तक अपने आधे से ज्यादा मौजूदा विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों पर दांव खेला है. इसके अलावा अपने दो विधायकों की सीट में बदलाव किया है और दो विधायकों की जगह पर उनके बेटे को प्रत्याशी बनाया है.
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव ऐलान से पहले प्रत्याशियों के उतारने से पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि नए चेहरों को अपने क्षेत्रों में तैयारी के लिए पर्याप्त मौका मिल सकेगा. खासकर बीजेपी और कांग्रेस से आए हुए कई नेताओं को प्रत्याशी बनाया है, जिन्होंने हाल ही में आम आजमी पार्टी का दामन थामा है. इस तरह चुनाव के लिए उन्हें पूरा टाइम मिल सकेगा.
बगावत का खतरा ऐसे होगा कम
आम आदमी पार्टी ने अपने जिन मौजूदा विधायकों के टिकट कटे हैं, जिसके चलते उनके बगावत का खतरा भी बन गया है. ऐसे में आम आदमी पार्टी के पास इतना समय होगा कि अपने नेताओं की नाराजगी को दूर करने के लिए समय रहते कदम उठा सके. इसके लिए उनकी स्टैटेजी है कि उनके साथ बातचीत करके रोक लगा दी जाए या फिर वे खिलाफ हों भी तो चुनाव की घोषणा से पहले उनकी नाराजगी का काउंटर ढ़ूंढ़ने का पूरा वक्त पार्टी और उम्मीदवारों के पास हो.
आम आदमी पार्टी ने पहले ही उन सीटों पर नाम तय किए हैं, जहां बदलाव करना जरूरी था और ना करने की हालत में नुकसान होने की संभावना बनी हुई थी. इस तरह कड़वा घूंट पहले पीने का फैसला लिया गया. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जिन कमजोर सीटों पर ज्यादा मेहनत की जरूरत थी, उन सीटों पर जीतने की रणनीति के तहत पहले उम्मीदवार उतारे गए हैं.
केजरीवाल के लिए लिटमस टेस्ट की तरह है दिल्ली चुनाव
दिल्ली विधानसभा चुनाव इस बार आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के लिए एक तरह लिटमस टेस्ट माना जा रहा है. यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल किसी तरह का कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहते हैं. इसीलिए जिताऊ उम्मीदवारों पर ही दांव खेला जा रहा है. मनीष सिसोदिया जैसे नेता की भी सीट बदल दी गई है तो दिलीप पांडे का टिकट काट दिया है.
आम आदमी पार्टी के लिए जो सीटें टफ या फिर फंसी हुई मानी जा रही थी, उन्हीं सीटों पर टिकट काटे गए हैं और उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया गया है. आम आदमी पार्टी ने 20 टिकट इस बार बदल दिए हैं और उनकी जगह पर नए या फिर जीतने की संभावना वाले प्रत्याशी उतारे हैं. पूर्वी दिल्ली और बाहरी दिल्ली की सीटें ज्यादा शामिल हैं.
आम आदमी पार्टी के 31 उम्मीदवारों के बाद अब जो 39 सीटें बचीं हैं, उनमें बड़े स्तर पर बदलाव शायद ही किया जाए. माना जा रहा है कि यथा स्थिति बहाल रखी जाए. इसका मतलब है कि ऐसी सीटों पर आम आदमी पार्टी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करने की जल्दी नहीं करेगी और उसकी कोशिश होगी कि विरोधी अपने पत्ते पहले खोलें, उसके बाद प्रत्याशी के नाम का ऐलान किया जाएगा.