पहली बार इतना आगे बढ़े केशव प्रसाद मौर्य… क्या अपने मंसूबे में होंगे कामयाब?

लोकसभा चुनाव के बाद से उत्तर प्रदेश बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. बीजेपी कार्यसमिति में सरकार से बड़ा संगठन बताने वाले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य अब खुलकर मैदान में उतर गए हैं. कैबिनेट की बैठक के बाद कुंभ को लेकर प्रयागराज में हुई मीटिंग से भी केशव ने दूरी बनाए रखी और अब अपनी सरकार से सवाल पूछने लगे हैं. केशव प्रसाद मौर्य ने अपनी ही योगी सरकार को पत्र लिखकर पूछा कि संविदा और आउटसोर्सिंग से होने वाली भर्तियों में आरक्षण के नियमों का पालन कितना किया गया है?

सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच कई बार मनमुटाव की खबरें आईं है, लेकिन पिछले सात सालों में पहली बार केशव ने फ्रंटफुट पर उतरकर मोर्चा खोल दिया है. सरकारी विभागों में संविदा और आउटसोर्सिंग से हुई नियुक्तियों को लेकर केशव मौर्य ने 15 जुलाई को नियुक्ति और कार्मिक विभाग (डीओएपी) के अपर मुख्य सचिव देवेश चतुर्वेदी को पत्र लिखा. इसमें उन्होंने कहा कि विधान परिषद के प्रश्नों की ब्रीफिंग के दौरान कार्मिक विभाग के अधिकारियों से आउटसोर्सिंग और संविदा पर कार्यरत कुल अधिकारियों और कर्मचारियों की जानकारी मांगी थी.

योगी सरकार ने कितनी की भर्ती?

केशव ने पूछा था कि संविदा भर्ती में आरक्षण के नियम का कितना पालन किया गया. इसके अलावा उन्होंने 69000 सहायक अध्यापक भर्ती में आरक्षण की विसंगति के बाद चयनित 6800 आरक्षण वर्ग के अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने के मुद्दा का जिक्र किया है. उनका मानना है कि शिक्षक भर्ती में आरक्षण का यह मुद्दा काफी दिनों से अटका है, इसके कारण ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थी आंदोलन कर रहे हैं. ऐसे में इसका पालन कर लिया जाना चाहिए.

यूपी में 2017 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से 2023 तक संविदा से 56 हजार 491 और आउटसोर्सिंग से 2 लाख 75 हजार 497 भर्तियां सरकारी विभागों में की गई हैं. इसके अलावा विभिन्न निकायों में 1 लाख 7 हजार 936 कर्मचारी आउटसोर्सिंग से रखे गए हैं. केशव प्रसाद ने 16 अगस्त, 2023 को भी नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग को पत्र लिखकर संविदा और आउटसोर्सिंग नियुक्ति में आरक्षण के नियमों का पालन नहीं होने पर आपत्ति जताई थी. इसे लेकर अब दोबारा से उन्होंने सूचना मांगी है.

नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग सीएम के पास

केशव प्रसाद मौर्य ने पत्र लिखने के एक दिन पहले 14 जुलाई को प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में कहा था कि सरकार से बड़ा संगठन होता है. अगले ही दिन सोशल मीडिया पर लिखा कि संगठन सरकार से बड़ा है. इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के बाद से केशव प्रसाद मौर्य कैबिनेट की बैठकों में भी शामिल नहीं हो रहे हैं. इस कड़ी में कुंभ की तैयारियों को लेकर सीएम योगी की अध्यक्षता में हुई समीक्षा बैठक में भी केशव प्रसाद शामिल नहीं हुए, जबकि फूलपुर के सांसद, मंत्री नंद गोपाल नंदी सहित सभी प्रयागराज के विधायकों ने शिरकत किया था.

केशव प्रसाद मौर्य ने जिस नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग से भर्तियों में आरक्षण के पालन करने की सूचना मांगी है, उस विभाग की जिम्मेदारी सीएम योगी आदित्यनाथ के पास है. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो केशव प्रसाद मौर्य ने अब खुलकर मोर्चा खोल दिया है, जिस तरह से उन्होंने सूचना मांगी है, उसके राजनीतिक मकसद को भी समझा जा सकता है.नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग सीएम के पास है. ऐसे में उनके मंजूरी के बिना ना तो कोई शासनादेश लागू हो सकता है और ना ही कोई सूचना जारी हो सकती है. केशव प्रसाद मौर्य ने संविदा भर्ती में ओबीसी, दलित के आरक्षण का मुद्दा उठाकर बड़ा सियासी दांव चल दिया है, जिसे लेकर बीजेपी के सहयोगी दल भी सवाल खड़े कर रहे हैं.

आरक्षण के मुद्दे पर विपक्ष के सुर से सुर मिलाए

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी समुदाय से आते हैं और बीजेपी के ओबीसी चेहरा हैं. लोकसभा चुनाव में जिस तरह ओबीसी के वोटर छिटके हैं, उसे लेकर बीजेपी की चुनौती पहले से ही बढ़ गई है. इसीलिए केशव मौर्य की अब इस मुद्दे को उठाकर अपनी ओबीसी की पहचान को बनाए रखने की मंशा है, लेकिन उनके इस कदम से टकराव और बढ़ेगा. आरक्षण के मुद्दे पर पहले से ही योगी सरकार घिरी है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा है, जिसे लगातार सहयोगी दल उठा रहे हैं. अब केशव मौर्य ने इस मुद्दे पर पत्र लिखकर विपक्षी दलों के सुर में सुर मिलाकर अपनी ही सरकार को विपक्ष के निशाने पर ला दिया है.

2017 में बीजेपी ने 15 साल के बाद यूपी की सत्ता में वापसी की थी, उस समय प्रदेश अध्यक्ष की कमान केशव प्रसाद मौर्य के हाथों में थी. ऐसे में केशव प्रसाद खुद को सीएम पद के उम्मीदवार के रूप में देख रहे थे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने सत्ता की कमान योगी आदित्यनाथ के हाथों में दे दी और केशव को डिप्टी सीएम के पद से ही संतोष करना पड़ा था. इसके बाद से दोनों ही नेताओं के बीच सियासी टकराव रहा, लेकिन पहली बार केशव प्रसाद मौर्य ने खुलकर मोर्चा खोला है. ऐसे में देखना है कि क्या केशव अपने कदम पीछे खींचेगे या फिर ऐसे ही फ्रंटफुट पर खड़े नजर आएंगे?

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