मां कुष्मांडा के चमत्कारी मंदिर… कहीं खुद प्रकट हुई मूर्ति, कहीं रिसता है रहस्यमयी पानी

भारत मंदिरों का देश है यहां हिंदू देवी देवताओं को समर्पित बहुत से प्राचीन मंदिर हैं. त्यौहारों के समय इस मंदिरों में कुछ अलग ही रौनक देखने को मिलती है. इन मंदिरों से बहुत ही रोचक पौराणिक कथाओं के साथ कुछ रहस्य भी है, जिनके बारे में आज तक कोई नहीं जान पाया है. यही कारण हैं जिनकी वजह से नवरात्रि में मां दुर्गा के मंदिरों में भक्त दर्शन के लिए आते हैं. आज हम आपको देश में मौजूद मां कुष्मांडा को समर्पित उन मंदिरों के बारे में बताएंगे, जहां नवरात्रि के दौरान आप जाकर मां कुष्मांडा का आशीर्वाद पा सकते हैं.

बनारस में मां कुष्मांडा का मंदिर

मां कुष्मांडा का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर भगवान शिव की नगरी बनारस के रामनगर में स्थित है. इस मंदिर से जुड़ी एक पौराणिकता मान्यता है कि सुबाहु नाम के राजा ने कठिन तप कर देवी से यह वरदान मांगा था कि देवी इसी नाम से उनकी राजधानी वाराणसी में निवास करें. देवी भागवत पुराण में इसका उल्लेख मिलता है. नवरात्रि के दौरान भक्त यहां दूर-दूर से मां कुष्मांडा के दर्शन के लिए आते हैं.

रहस्यमयी है मां की मूर्ति

मंदिर में स्थापित मां कुष्मांडा की मूर्ति को लेकर यह मान्यता है कि इस मूर्ति का निर्माण किसी व्यक्ति ने नहीं किया बल्कि माता की यह मूर्ति लोगों की बुरी ताकतों से रक्षा करने के लिए स्वयं ही प्रकट हुई थी. इस मंदिर को बंदर मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर के परिसर में काफी संख्या में बंदर उपस्थित रहते है.

मां कुष्मांडा मंदिर, उत्तराखंड

देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में अगस्त्यमुनि ब्लॉक के सिल्ला गांव में मां कुष्मांडा को सुख की देवी के रूप से पूजा जाता है. मान्यता है कि सिल्ला गांव में ही महर्षि अगस्त्य की कोख से कूष्मांडा देवी का जन्म हुआ था. दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ क्रम में मां कूष्मांडा के जन्म का वर्णन किया गया है. देवी को स्थानीय परिवेश में कुमासैंण नाम से भी पूजा जाता है.

प्रचलित है मां की अनोखी कथा

कहा जाता है कि जब हिमालय क्षेत्र में असुरों का आतंक था, तब ऋषि-मुनि अपने आश्रमों में पूजा-अर्चना नहीं कर पाते थे. ऐसी ही स्थिति साणेश्वर महाराज के मंदिर में भी थी. यहां जो भी ब्राह्मण पूजा-अर्चना को पहुंचते, राक्षस उन्हें मार डालते . तब साणेश्वर महाराज ने अपने भाई अगस्त्य ऋषि से मदद मांगी. जिसके बाद वह सिल्ला गांव पहुंचे और मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे, लेकिन राक्षसों का उत्पात देखकर वह भी सहम गए. उन्होंने आदिशक्ति मां जगदंबा का ध्यान किया और अपनी कोख को मला, जिससे मां कुष्मांडा ने जन्म लिया.

मां कुष्मांडा मंदिर, कानपुर

उत्तर प्रदेश के कानपुर में मां कुष्मांडा का एक प्राचीन मंदिर स्थित है. इस मंदिर में मां कुष्मांडा पिंडी स्वरूप में विराजमान हैं. मंदिर में स्थापित मूर्तियां दूसरी से दसवीं शताब्दी के मध्य की बताई जाती हैं. लोक मान्यता है कि इस मंदिर की खोज एक कुड़हा नाम के ग्वाले ने की थी. उसकी गाय यहां की झाड़ी में अपना दूध मां को चढ़ा देती थी जिसे देखकर ग्वाले हैरानी हुई और उसने इस जगह पर खुदाई की तो उसे मूर्ति दिखी लेकिन उसका अंत नहीं मिला. जिसके बाद ग्वाले ने यहां चबूतरे बनवा दिया और मां कुष्मांडा की आराधना की जाने लगी.

रिसता है रहस्यमयी जल

इस मंदिर में मां कुष्मांडा पिंडी रूप में विराजमान हैं और इस पिंड की खास बात यह है कि इसमें से हमेशा पानी रिसता रहता है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति पिंडी से निकलने वाले पानी को पीता है, उसे रोगों से मुक्ति मिलती है और जीवन कोई गंभीर रोग नहीं सताता है. यही कारण है कि नवरात्रि के दौरान यहां पर बड़ी संख्या में लोग मां कुष्मांडा के दर्शन करने के लिए आते हैं.

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